Wednesday, October 9, 2024
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Shri Ganpati Atharvashirsha PDF – श्री गणपति अथर्वशीर्ष पाठ 2024-25

गणेश जी बुद्धि और विद्या के दाता हैं, जिन्हें परमात्मा का विघ्ननाशक स्वरूप माना जाता है। उनके भक्त विभिन्न तरीकों से उनकी आराधना करते हैं, जैसे श्लोक, स्तोत्र, और जाप। इनमें से एक प्रमुख पाठ है श्री गणपति अथर्वशीर्ष (Ganpati Atharvashirsha), जो अत्यंत मंगलकारी माना जाता है।

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गणेश जी की कृपा प्राप्त करने के लिए प्रतिदिन प्रात:काल इस पाठ का शुद्ध मन से करना आवश्यक है। ऐसा करने से भक्तों को उनके आशीर्वाद की प्राप्ति होती है। गणेश जी की आराधना केवल धार्मिक कृत्य नहीं है, बल्कि यह ज्ञान, समृद्धि और सफलता की प्राप्ति का एक महत्वपूर्ण साधन है। श्री गणपति अथर्वशीर्ष की महिमा अत्यधिक है, और इसका पाठ न केवल मन को शांति और संतोष प्रदान करता है, बल्कि व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार भी करता है।

इस स्तोत्र में भगवान गणेश के विभिन्न गुणों और उनकी शक्तियों का वर्णन किया गया है। हम यहां अर्थ सहित श्री गणपति अथर्वशीर्ष स्तोत्र को प्रस्तुत कर रहे हैं, जिससे भक्त इस महत्वपूर्ण पाठ को सही रूप से समझ सकें और अपनी आराधना को और भी प्रभावशाली बना सकें। गणेश जी का ध्यान करने से सभी विघ्न दूर होते हैं, और जीवन में सुख-शांति का संचार होता है।

श्री गणपति अथर्वशीर्ष पाठ की विधि

श्री गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ एक महत्वपूर्ण धार्मिक क्रिया है, जिसे श्रद्धा और शुद्धता के साथ करना चाहिए। पाठ शुरू करने से पहले, एक स्वच्छ स्थान पर आसन लगाना चाहिए। सभी धार्मिक सामग्रियाँ जैसे दीपक, अगरबत्ती, फूल, और फल इत्यादि का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है। पाठ के आरंभ में गणेश जी की पूजा करके उनके चित्र या मूर्ति के समक्ष बैठकर ध्यान करना चाहिए।

इसके बाद, पाठ प्रारंभ किया जाता है। यह पाठ सामूहिक या व्यक्तिगत रूप से किया जा सकता है, लेकिन ध्यान रहे कि पाठ करते समय मन को एकाग्र रखना चाहिए। पाठ के दौरान विभिन्न श्लोकों का उच्चारण ध्यानपूर्वक करना चाहिए, ताकि उनका अर्थ और प्रभाव सही ढंग से समझा जा सके। पाठ के समाप्ति के बाद, भगवान गणेश को प्रणाम करके उनका आभार व्यक्त करना चाहिए और प्रसाद वितरण करना चाहिए।

इस विधि का पालन करने से न केवल पाठ की शुद्धता बनी रहती है, बल्कि भक्तों को गणेश जी की कृपा भी शीघ्र मिलती है। नियमित रूप से इस पाठ का अभ्यास करने से जीवन में आने वाले विघ्न दूर होते हैं, और सुख-समृद्धि का संचार होता है।

ganpati atharvashirsha in hindi

श्री गणपति अथर्वशीर्ष पाठ से लाभ

श्री गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ अनेक लाभ प्रदान करता है। इसका सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह भगवान गणेश की कृपा को आकर्षित करता है। गणेश जी बुद्धि, समृद्धि और भाग्य के देवता हैं, और उनके नाम का उच्चारण करने से भक्त के सभी विघ्न और बाधाएँ दूर होती हैं।

इस पाठ से मानसिक शांति और एकाग्रता में वृद्धि होती है, जिससे व्यक्ति अपने कार्यों में सफल होता है। जो लोग इस पाठ का नियमित रूप से करते हैं, उन्हें जीवन में सकारात्मकता का अनुभव होता है। यह पाठ न केवल व्यक्ति को आध्यात्मिक रूप से सशक्त बनाता है, बल्कि यह शारीरिक स्वास्थ्य और मानसिक कल्याण में भी सहायक होता है।

आर्थिक संकट में भी यह पाठ बहुत लाभकारी सिद्ध होता है, क्योंकि यह धन और समृद्धि को आकर्षित करता है। इसे करने से घर में सुख-शांति का माहौल बना रहता है। कुल मिलाकर, श्री गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ जीवन में खुशहाली, समृद्धि और सफलता का प्रतीक है।


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श्री गणपति अथर्वशीर्ष स्तोत्र एवं अर्थ

शांति पाठ
ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा।
भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः।।
स्थिरैरंगैस्तुष्टुवां सस्तनूभिः।
व्यशेम देवहितं यदायुः।।

अर्थ:
हे देववृंद, हम अपने कानों से कल्याणमय वचन सुनें। जो याज्ञिक अनुष्ठानों के योग्य हैं ऐसे हे देव, हम अपनी आंखों से मंगलमय कार्यों को होते देखें निरोग इंद्रियों एवं स्वस्थ देह के माध्यम से आपकी स्तुति करते हुए हम प्रजापति ब्रह्मा द्वारा हमारे हितार्थ सौ वर्ष अथवा उससे भी अधिक जो आयु नियत कर रखी है उसे प्राप्त करें। तात्पर्य है कि हमारे शरीर के सभी अंग और इंद्रियां स्वस्थ एवं क्रियाशील बने रहें और हम सौ या उससे अधिक लंबी आयु पावें।

ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः।
स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः॥
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः।
स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु॥
ॐ शांतिः॥ शांतिः॥ शांतिः॥

अर्थ:
महान कीर्तिमान, ऐश्वर्यवान इन्द्र हमारा कल्याण करें, विश्व के ज्ञान स्वरूप, सर्वज्ञ, सबके पोषणकर्ता पूषा अर्थात सूर्य हमारा कल्याण करें, जिनके चक्रीय गति को कोई रोक नहीं सकता वे गरुड़ देव हमारा कल्याण करें, अरिष्टनेमि जो प्रजापति हैं वे सभी दुरितों को दूर करने वाले हैं वे हमारा कल्याण करें, वेद वाणी के स्वामी, सतत वर्धनशील बृहस्पति हमारा कल्याण करें। ॐ सर्वत्र शांति स्थापित हो।

ॐ नमस्ते गणपतये।।
त्वमेव प्रत्यक्षं तत्त्वमसि। त्वमेव केवलं कर्ताऽसि।
त्वमेव केवलं धर्ताऽसि। त्वमेव केवलं हर्ताऽसि।
त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि।
त्वं साक्षादात्माऽसि नित्यम् ।।1।।

अर्थ:
ॐकार पति भगवान गणपति को नमस्कार है। हे गणेश तुम्हीं प्रत्यक्ष तत्व हो। तुम्हीं केवल कर्ता हो। तुम्हीं केवल धर्ता हो। तुम्हीं केवल हर्ता हो। निश्चयपूर्वक तुम्हीं इन सब रूपों में विराजमान ब्रह्म हो। तुम साक्षात नित्य आत्मस्वरूप हो।

ऋतं वच्मि। सत्यं वच्मि।। 2 ।।

अर्थ:
मैं यथार्थ कहता हूं। सत्य कहता हूं।

अव त्वं माम् । अव वक्तारम्। अव श्रोतारम्।
अव दातारम्। अव धातारम्।
अवानूचानमव शिष्यम्।
अव पश्चात्तात्। अव पुरस्त्तात्।
अवोत्तरात्तात् । अव दक्षिणात्तात्।
अव चोर्ध्वात्तात्। अवाधरात्तात्।
सर्वतो मां पाहि पाहि समंतात् ॥3॥

अर्थ:
हे पार्वती नंदन आप मेरी, मुझ शिष्य की रक्षा करो। वक्ता आचार्य की रक्षा करो। श्रोता की रक्षा करो। दाता की रक्षा करो। धाता की रक्षा करो। व्याख्या करने वाले आचार्य की रक्षा करो। शिष्य की रक्षा करो। पश्चिम से रक्षा। पूर्व से रक्षा करो। उत्तर से रक्षा करो। दक्षिण से रक्षा करो। ऊपर से रक्षा करो। नीचे से रक्षा करो। सब ओर से मेरी रक्षा करो। चारों ओर से मेरी रक्षा करो।

त्वं वाङ्‍मयस्त्वं चिन्मय:।
त्वमानंदमयस्त्वं ब्रह्ममय:।
त्वं सच्चिदानंदा द्वितीयोऽसि।
त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्मासि।
त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि ॥4॥

अर्थ:
आप वाङ्मय हो, चिन्मय हो। तुम आनंदमय हो। तुम ब्रह्ममय हो। तुम सच्चिदानंद अद्वितीय हो। तुम प्रत्यक्ष ब्रह्म हो। तुम दानमय विज्ञानमय हो।

सर्वं जगदिदं त्वत्तो जायते॥
सर्वं जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति॥
सर्वं जगदिदं त्वयि लयमेष्यति॥
सर्वं जगदिदं त्वयि प्रत्येति॥
त्वं भूमिरापोऽनलोऽनिलो नभः॥
त्वं चत्वारि वाक्पदानि ॥5॥

अर्थ:
यह जगत तुमसे उत्पन्न होता है। यह सारा जगत तुममें विलय को प्राप्त होगा। इस सारे जगत की तुममें प्रतीति हो रही है। तुम भूमि, जल, अग्नि, वायु और आकाश हो। परा, पश्चंती, बैखरी और मध्यमा वाणी के ये भाग तुम्हीं हो।

त्वं गुणत्रयातीतः त्वमवस्थात्रयातीतः॥
त्वं देहत्रयातीतः ॥ त्वं कालत्रयातीतः॥
त्वं मूलाधारस्थितोऽसि नित्यम्॥
त्वं शक्तित्रयात्मकः॥
त्वां योगिनो ध्यायंति नित्यं॥
त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वं रुद्रस्त्वं
इन्द्रस्त्वं अग्निस्त्वं वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चंद्रमास्त्वं
ब्रह्मभूर्भुवःस्वरोम्॥6॥

अर्थ:
सत्व, रज और तम तीनों गुणों से परे हो। तुम जागृत, स्वप्न और सुषुप्ति इन तीनों अवस्थाओं से परे हो। तुम स्थूल, सूक्ष्म और वर्तमान तीनों देहों से परे हो। तुम भूत, भविष्य और वर्तमान तीनों कालों से परे हो। तुम मूलाधार चक्र में नित्य स्थित रहते हो। इच्छा, क्रिया और ज्ञान तीन प्रकार की शक्तियाँ तुम्हीं हो। तुम्हारा योगीजन नित्य ध्यान करते हैं। तुम ब्रह्मा हो, तुम विष्णु हो, तुम रुद्र हो, तुम इन्द्र हो, तुम अग्नि हो, तुम वायु हो, तुम सूर्य हो, तुम चंद्रमा हो, तुम ब्रह्म हो, भू:, र्भूव:, स्व: ये तीनों लोक तथा ॐकार वाच्य पर ब्रह्म भी तुम हो।

गणादि पूर्वमुच्चार्य वर्णादि तदनंतरम्॥
अनुस्वारः परतरः ॥ अर्धेन्दुलसितम् ॥ तारेण ऋद्धम्॥
एतत्तव मनुस्वरूपम् ॥ गकारः पूर्वरूपम्॥
अकारो मध्यमरूपम् ॥ अनुस्वारश्चान्त्यरूपम्॥
बिन्दुरुत्तररूपम् ॥ नादः संधानम्॥
संहितासंधिः ॥ सैषा गणेशविद्या॥
गणकऋषिः ॥ निचृद्गायत्रीच्छंदः॥
गणपतिर्देवता ॥ ॐ गं गणपतये नमः॥7॥

अर्थ:
गण के आदि अर्थात ‘ग्’ कर पहले उच्चारण करें। उसके बाद वर्णों के आदि अर्थात ‘अ’ उच्चारण करें। उसके बाद अनुस्वार उच्चारित होता है। इस प्रकार अर्धचंद्र से सुशोभित ‘गं’ ॐकार से अवरुद्ध होने पर तुम्हारे बीज मंत्र का स्वरूप (ॐ गं) है। गकार इसका पूर्वरूप है।बिन्दु उत्तर रूप है। नाद संधान है। संहिता संविध है। ऐसी यह गणेश विद्या है। इस महामंत्र के गणक ऋषि हैं। निचृंग्दाय छंद है श्री मद्महागणपति देवता हैं। वह महामंत्र है- ॐ गं गणपतये नमः।

एकदंताय विद्महे । वक्रतुण्डाय धीमहि।
तन्नो दन्तिः प्रचोदयात् ॥8॥

अर्थ:
एक दंत को हम जानते हैं। वक्रतुण्ड का हम ध्यान करते हैं। वह दन्ती (गजानन) हमें प्रेरणा प्रदान करें। यह गणेश गायत्री है।

एकदंतं चतुर्हस्तं पाशमंकुशधारिणम्।
रदं च वरदं हस्तैर्ब्रिभ्राणं मूषकध्वजम्।
रक्तं लंबोदरं शूर्पकर्णकं रक्तवाससम्।
रक्तगंधानुलिप्तांगं रक्तपुष्पै: सुपुजितम्।
भक्तानुकंपिनं देवं जगत्कारणमच्युतम्।
आविर्भूतं च सृष्टयादौ प्रकृतेः पुरुषात्परम्।
एवं ध्यायति यो नित्यं स योगी योगिनां वर:॥9॥

अर्थ:
एकदंत चतुर्भुज चारों हाथों में पाक्ष, अंकुश, अभय और वरदान की मुद्रा धारण किए तथा मूषक चिह्न की ध्वजा लिए हुए, रक्तवर्ण लंबोदर वाले सूप जैसे बड़े-बड़े कानों वाले रक्त वस्त्रधारी शरीर पर रक्त चंदन का लेप किए हुए रक्तपुष्पों से भलीभांति पूजित। भक्त पर अनुकम्पा करने वाले देवता, जगत के कारण अच्युत, सृष्टि के आदि में आविर्भूत प्रकृति और पुरुष से परे श्री गणेश जी का जो नित्य ध्यान करता है, वह योगी सब योगियों में श्रेष्ठ है।

नमो व्रातपतये। नमो गणपतये। नम: प्रमथपतये।
नमस्तेऽस्तु लंबोदरायैकदंताय।
विघ्ननाशिने शिवसुताय।
श्री वरदमूर्तये नमो नमः॥10॥

अर्थ:
व्रात अर्थात देव समूह के नायक को नमस्कार। गणपति को नमस्कार। प्रथम पति अर्थात शिवजी के गणों के अधिनायक, के लिए नमस्कार। लंबोदर को, एकदंत को, शिवजी के पुत्र को तथा श्री वरदमूर्ति को नमस्कार-नमस्कार।

॥ फल श्रुति ॥

एतदथर्वशीर्षं योऽधीते। स ब्रह्मभूयाय कल्पते।
स सर्वतः सुखमेधते । स सर्वविघ्नैर्नबाध्यते।
स पञ्चमहापापातप्रमुच्यते ॥11॥

अर्थ:
यह अथर्वशीर्ष (अथर्ववेद का उपनिषद) है। इसका पाठ जो करता है, ब्रह्म को प्राप्त करने का अधिकारी हो जाता है। सब प्रकार के विघ्न उसके लिए बाधक नहीं होते। वह सब जगह सुख पाता है। वह पांचों प्रकार के महान पातकों तथा उपपातकों से मुक्त हो जाता है।

सायमधीयानो दिवसकृतं पापं नाशयति।
प्रातरधीयानो रात्रिकृतं पापं नाशयति।
सायंप्रातः प्रयुञ्जानो अपापो भवति।
सर्वत्राधीयानोऽपविघ्नो भवति।
धर्मार्थकाममोक्षं च विन्दति ॥12॥

अर्थ:
सायंकाल पाठ करने वाला दिन के पापों का नाश करता है। प्रात:काल पाठ करने वाला रात्रि के पापों का नाश करता है। जो प्रातः, सायं दोनों समय इसका पाठ करता है वह निष्पाप हो जाता है। वह सर्वत्र विघ्नों का नाश कर धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को प्राप्त करता है।

इदम् अथर्वशीर्षमऽशिष्याय न देयम्।
यो यदि मोहाद्दास्यति स पापीयान् भवति।
सहस्रावर्तनात् यं यं काममधीते।
तं तमनेन साधयेत्॥13॥

अर्थ:
इस अथर्वशीर्ष को जो शिष्य न हो उसे नहीं देना चाहिए। जो मोह के कारण देता है वह पातकी हो जाता है। सहस्र (हज़ार) बार पाठ करने से जिन-जिन कामों-कामनाओं का उच्चारण करता है, उनकी सिद्धि इसके द्वारा ही मनुष्य कर सकता है।

अनेन गणपतिमभिषिञ्चति स वाग्मी भवति।
चतुर्थ्यामनश्नञ्जपति स विद्यावान् भवति।
इत्यथर्वण वाक्यं।
ब्रह्माद्यावरणं विद्यात्। न बिभेति कदाचनेति ॥14॥

अर्थ:
इसके द्वारा जो गणपति को स्नान कराता है, वह वक्ता बन जाता है। जो चतुर्थी तिथि को उपवास करके जपता है वह विद्यावान हो जाता है, यह अथर्व वाक्य है जो इस मंत्र के द्वारा तपश्चरण करना जानता है वह कदापि भय को प्राप्त नहीं होता।

यो दूर्वाङ्कुरैर्यजति स वैश्रवणोपमो भवति।
यो लाजैर्यजति स यशोवान् भवति।
स मेधावान् भवति।
यो मोदकसहस्रेण यजति।
स वाञ्छितफलमवाप्नोति।
यः साज्यसमिद्भिर्यजति।
स सर्वं लभते स सर्वं लभते ॥15॥

अर्थ:
जो दूर्वांकुर के द्वारा भगवान गणपति का यजन करता है वह कुबेर के समान हो जाता है। जो लाजो (धानी-लाई) के द्वारा यजन करता है वह यशस्वी होता है, मेधावी होता है। जो सहस्र (हजार) लड्डुओं (मोदकों) द्वारा यजन करता है, वह वांछित फल को प्राप्त करता है। जो घृत के सहित समिधा से यजन करता है, वह सब कुछ प्राप्त करता है।

अष्टौ ब्राह्मणान् सम्यग्ग्राहयित्वा
सूर्यवर्चस्वी भवति।
सूर्यग्रहे महानद्यां प्रतिमासंनिधौ
वा जप्त्वा सिद्धमंत्रो भवति।
महाविघ्नात्प्रमुच्यते। महादोषात्प्रमुच्यते।
महापापात् प्रमुच्यते।
स सर्वविद्भवति स सर्वविद्भवति।
य एवं वेद इत्युपनिषत् ॥ 16॥

अर्थ:
आठ ब्राह्मणों को सम्यक रीति से भोजन कराने पर दाता सूर्य के समान तेजस्वी होता है। सूर्य ग्रहण में महानदी में या प्रतिमा के समीप जपने से मंत्र सिद्धि होती है। वह महाविघ्न से मुक्त हो जाता है। जो इस प्रकार जानता है, वह सर्वज्ञ हो जाता है वह सर्वज्ञ हो जाता है।

॥ अथर्ववेदीय गणपति उपनिषद समाप्त ॥

॥ शान्ति मंत्र ॥

ॐ सहनाववतु । सहनौभुनक्तु।
सह वीर्यं करवावहै।
तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै॥

अर्थ:
भगवान, हम गुरु और शिष्य की एक साथ रक्षा करे। हमारा साथ-साथ पालन करें। हम दोनों को साथ-साथ पराक्रमी बनाएं। हम दोनों का जो पढ़ा हुआ शास्त्र है, वो तेजस्वी हो। हम गुरु और शिष्य एक दूसरे से द्वेष न करें।

ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा।
भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः॥
स्थिरैरंगैस्तुष्टुवांसस्तनूभिः।
व्यशेम देवहितं यदायुः॥

अर्थ:
हे देववृंद, हम अपने कानों से कल्याणमय वचन सुनें। जो याज्ञिक अनुष्ठानों के योग्य हैं ऐसे हे देव, हम अपनी आंखों से मंगलमय कार्यों को होते देखें निरोग इंद्रियों एवं स्वस्थ देह के माध्यम से आपकी स्तुति करते हुए हम प्रजापति ब्रह्मा द्वारा हमारे हितार्थ सौ वर्ष अथवा उससे भी अधिक जो आयु नियत कर रखी है उसे प्राप्त करें। तात्पर्य है कि हमारे शरीर के सभी अंग और इंद्रियां स्वस्थ एवं क्रियाशील बने रहें और हम सौ या उससे अधिक लंबी आयु पावें।

ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः।
स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः॥
स्वस्तिनस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः।
स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु॥

अर्थ:
महान कीर्तिमान, ऐश्वर्यवान इन्द्र हमारा कल्याण करें, विश्व के ज्ञान स्वरूप, सर्वज्ञ,सबके पोषणकर्ता पूषा अर्थात सूर्य हमारा कल्याण करें, जिनके चक्रीय गति को कोई रोक नहीं सकता वे गरुड़ देव हमारा कल्याण करें, अरिष्टनेमि जो प्रजापति हैं वे सभी दुरितों को दूर करने वाले हैं वे हमारा कल्याण करें, वेद वाणी के स्वामी, सतत वर्धनशील बृहस्पति हमारा कल्याण करें।

ॐ शांतिः॥ शांतिः॥ शांतिः॥ अर्थ:
ॐ सर्वत्र शांति स्थापित हो।

॥ इति श्री गणपति अथर्वशीर्ष स्तोत्रम् ॥

Ganpati Atharvashirsha English

॥ Shaanti Paat’ha ॥
om bhadram karnebhih’ shri’nuyaama devaa ।
bhadram pashyemaakshabhiryajatraah’ ॥
sthirairangaistusht’uvaamsastanoobhih’ ।
vyashema devahitam yadaayuh’ ॥
om svasti na indro vri’ddhashravaah’ ।
svasti nah’ pooshaa vishvavedaah’ ॥
svastinastaarkshyo arisht’anemih’ ।
svasti no bri’haspatirdadhaatu ॥
om tanmaamavatu
tad vaktaaramavatu
avatu maam
avatu vaktaaram
om shaantih’ । shaantih’ ॥ shaantih’॥।
॥ upanishat ॥

harih’ om namaste ganapataye ॥
tvameva pratyaksham tattvamasi ॥ tvameva kevalam kartaa’si ॥
tvameva kevalam dhartaa’si ॥ tvameva kevalam hartaa’si ॥
tvameva sarvam khalvidam brahmaasi ॥
tvam saakshaadaatmaa’si nityam ॥ 1 ॥

॥ svaroopa tattva ॥
Ri’tam vachmi (vadishyaami) ॥
satyam vachmi (vadishyaami) ॥ 2 ॥

ava tvam maam ॥ ava vaktaaram ॥ ava shrotaaram ॥
ava daataaram ॥ ava dhaataaram ॥
avaanoochaanamava shishyam ॥
ava pashchaattaat ॥ ava purastaat ॥
avottaraattaat ॥ ava dakshinaattaat ॥
ava chordhvaattaat ॥ avaadharaattaat ॥
sarvato maam paahi paahi samantaat ॥ 3 ॥

tvam vaangmayastvam chinmayah’ ॥
tvamaanandamayastvam brahmamayah’ ॥
tvam sachchidaanandaadviteeyo’si ॥
tvam pratyaksham brahmaasi ॥
tvam jnyaanamayo vijnyaanamayo’si ॥ 4 ॥

sarvam jagadidam tvatto jaayate ॥
sarvam jagadidam tvattastisht’hati ॥
sarvam jagadidam tvayi layameshyati ॥
sarvam jagadidam tvayi pratyeti ॥
tvam chatvaari vaakpadaani ॥ 5 ॥

tvam gunatrayaateetah’ tvamavasthaatrayaateetah’ ॥
tvam dehatrayaateetah’ ॥ tvam kaalatrayaateetah’ ॥
tvam moolaadhaarasthito’si nityam ॥
tvam shaktitrayaatmakah’ ॥
tvaam yogino dhyaayanti nityam ॥
tvam brahmaa tvam vishnustvam rudrastvam
indrastvam agnistvam vaayustvam sooryastvam chandramaastvam
brahmabhoorbhuvah’svarom ॥ 6 ॥

॥ Ganesha Mantra ॥
ganaadim poorvamuchchaarya varnaadim tadanantaram ॥
anusvaarah’ paratarah’ ॥ ardhendulasitam ॥ taarena ri’ddham ॥
etattava manusvaroopam ॥ gakaarah’ poorvaroopam ॥
akaaro madhyamaroopam ॥ anusvaarashchaantyaroopam ॥
binduruttararoopam ॥ naadah’ sandhaanam ॥
samhitaasandhih’ ॥ saishaa ganeshavidyaa ॥
ganakari’shih’ ॥ nichri’dgaayatreechchhandah’ ॥
ganapatirdevataa ॥ om gam ganapataye namah’ ॥ 7 ॥

॥ Ganesha Gaayatree ॥
ekadantaaya vidmahe । vakratund’aaya dheemahi ॥
tanno dantih’ prachodayaat ॥ 8॥

॥ Ganesha Roopa ॥
ekadantam chaturhastam paashamankushadhaarinam ॥
radam cha varadam hastairbibhraanam mooshakadhvajam ॥
raktam lambodaram shoorpakarnakam raktavaasasam ॥
raktagandhaanuliptaangam raktapushpaih’ supoojitam ॥
bhaktaanukampinam devam jagatkaaranamachyutam ॥
aavirbhootam cha sri’sht’yaadau prakri’teh’ purushaatparam ॥
evam dhyaayati yo nityam sa yogee yoginaam varah’ ॥ 9 ॥

॥ Asht’a Naama Ganapati ॥
namo vraatapataye । namo ganapataye । namah’ pramathapataye ।
namaste’stu lambodaraayaikadantaaya ।
vighnanaashine shivasutaaya । shreevaradamoortaye namo namah’ ॥ 10 ॥

॥ Phalashruti ॥
etadatharvasheersham yo’dheete ॥ sa brahmabhooyaaya kalpate ॥
sa sarvatah’ sukhamedhate ॥ sa sarva vighnairnabaadhyate ॥
sa panchamahaapaapaatpramuchyate ॥
saayamadheeyaano divasakri’tam paapam naashayati ॥
praataradheeyaano raatrikri’tam paapam naashayati ॥

saayampraatah’ prayunjaano apaapo bhavati ॥
sarvatraadheeyaano’pavighno bhavati ॥
dharmaarthakaamamoksham cha vindati ॥
idamatharvasheershamashishyaaya na deyam ॥
yo yadi mohaaddaasyati sa paapeeyaan bhavati
sahasraavartanaat yam yam kaamamadheete
tam tamanena saadhayet ॥ 11 ॥

anena ganapatimabhishinchati sa vaagmee bhavati ॥
chaturthyaamanashnan japati sa vidyaavaan bhavati ।
sa yashovaan bhavati ॥
ityatharvanavaakyam ॥ brahmaadyaavaranam vidyaat
na bibheti kadaachaneti ॥ 12 ॥

yo doorvaankurairyajati sa vaishravanopamo bhavati ॥
yo laajairyajati sa yashovaan bhavati ॥
sa medhaavaan bhavati ॥
yo modakasahasrena yajati
sa vaanchhitaphalamavaapnoti ॥
yah’ saajyasamidbhiryajati
sa sarvam labhate sa sarvam labhate ॥ 13 ॥

asht’au braahmanaan samyaggraahayitvaa
sooryavarchasvee bhavati ॥
sooryagrahe mahaanadyaam pratimaasamnidhau
vaa japtvaa siddhamantro bhavati ॥
mahaavighnaatpramuchyate ॥ mahaadoshaatpramuchyate ॥
mahaapaapaat pramuchyate ॥
sa sarvavidbhavati sa sarvavidbhavati ॥
ya evam veda ityupanishat ॥ 14 ॥

॥ Shaanti Mantra ॥
om sahanaavavatu ॥ sahanaubhunaktu ॥
saha veeryam karavaavahai ॥
tejasvinaavadheetamastu maa vidvishaavahai ॥
om bhadram karnebhih’ shri’nuyaama devaa ।
bhadram pashyemaakshabhiryajatraah’ ॥
sthirairangaistusht’uvaamsastanoobhih’ ।
vyashema devahitam yadaayuh’ ॥
om svasti na indro vri’ddhashravaah’ ।
svasti nah’ pooshaa vishvavedaah’ ॥
svastinastaarkshyo arisht’anemih’ ।
svasti no bri’haspatirdadhaatu ॥

om shaantih’ । shaantih’ ॥ shaantih’ ॥।
॥ iti shreeganapatyatharvasheersham samaaptam ॥



Om, O Devas, May we Hear with our Ears what is Auspicious,
May we See with our Eyes what is Auspicious and Adorable,
May we be Prayerful with Steadiness in our Bodies (and Minds),
May we Offer our Lifespan allotted by the Devas,

May Indra of great Wisdom and Glory grant us Well-Being,
May Pushan (The Sun God, The Nourisher) of great knowledge grant us Well-Being,
May Tarksya (a mythical bird) of great protective power grant us well-being,
(And) May Brihaspati (The Guru of the Devas) grant us well-being,
Om, Peace, Peace, Peace,

Om, Salutations to You, O Ganapati,

(O Ganapati) You indeed are the visible Tattvam,
(O Ganapati) You indeed are the only Creator,
(O Ganapati) You indeed are the only Sustainer,
(O Ganapati) You indeed are the only Destroyer,
(O Ganapati) You indeed are all this (The Universe); You verily are the Brahman,
(O Ganapati) You are the visible Atman, the Eternal,

I declare the Ritam (Divine Law); I declare the Satyam (Absolute Reality),

(Now) Protect me (O Ganapati) (Protect the Truth I declared),
Protect the Speaker (O Ganapati) (Protect the Teacher who declares this Truth),
Protect the Listener (O Ganapati) (Protect the Student who listens to this Truth),
Protect the Giver (O Ganapati) (Protect the Giver of knowledge who transmits this Truth),
Protect the Sustainer (O Ganapati) (Protect the Sustainer who retains this Truth in Memory),
Protect the Disciple (O Ganapati) (Protect the Disciple who repeats this Truth following the Teacher),

Protect this Truth from the East (O Ganapati),
Protect this Truth from the South (O Ganapati),
Protect this Truth from the West (O Ganapati),
Protect this Truth from the North (O Ganapati),
Protect this Truth from the Top (O Ganapati),
Protect this Truth from the Bottom (O Ganapati),
(Now) Please Protect me (O Ganapati) (Protect this Truth I declared) from all sides,

You are of the nature of Words (Vangmaya), and You are of the nature of Consciousness (Chinmaya),
You are of the nature of Bliss, and You are of the nature of Brahman (which is the source of all Bliss) (Therefore, O Ganapati, the Absolute Truth I have spoken will give Bliss to all who realize it),
You are Sacchidananda, and You are the One without a second,
You are the visible Brahman,
You are of the nature of Gyana, and You are Vigyana,

The Entire Universe has Manifested from You,
The Entire Universe is Sustained by Your Power,
The Entire Universe will Dissolve in You,
The Entire Universe will thus finally Return to You,

You have manifested as Bhumi (Earth),
You have manifested as Apas (Water),
You have manifested as Anala (Fire),
You have manifested as Anila (Wind),
and You have manifested as Nabha (Sky or Space),
You are the Four Types of Speech (Para, Pashyanti, Madhyama and Vaikhari),

You are beyond the Three Gunas (Sattva, Rajas and Tamas)
You are beyond the Three States (Waking, Dreaming and Deep Sleep),
You are beyond the Three Bodies (Gross Body, Subtle Body and Causal Body),
You are beyond the Three Times (Past, Present and Future),

You always abide in the Muladhara,
You are the source of the Three Shaktis (Iccha Shakti, Kriya Shakti and Gyana Shakti) (Will Power, Power of Action and the Power of Knowledge),
The Yogis always meditate on You,

(O Ganapati) You are Brahma, You are Vishnu, You are …
Rudra, You are Indra, You are Agni, You are …
Vayu, You are Surya, You are Chandrama, You are …
Brahman, You pervade the Bhur-Bhuvah-Suvar Lokas; You are the Om Itself.

(The Mantra Swarupa of Ganapati is as follows) The first syllable of the word Gana (i.e. “G”) is to be pronounced first; then the first varna (i.e. “A”) should immediately follow (thus making “Ga”),
The Anuswara should follow next (thus making “Gam”),
Then it should be made to shine with the Half-Moon (i.e. the Nasal Sound of Chandrabindu, thus making “Gang”),
This should be Augmented by Tara,
This is Your Mantra Swarupa (O Ganapati),

G-kara is the first form, …
… A-kara is the middle form, …
… And Anuswara is the last form,
Bindu is the form on the top,
This is joined with Nada,
All the forms combine together,

This is the Ganesha Vidya,
The Rishi who realized this Vidya is Ganaka Rishi,
The Chhanda (Meter) is Nicrdgayatri,
The Devata worshipped is Ganapati,
Om Gang Ganapataye Namah (My Reverential Salutations to Ganapati),

(The Ganapati Gayatri) (Let our mind go) to the Ekadanta (the One with a Single Tusk) to know (His Conscious Form deeply); (And then) Meditate on that Vakratunda (the One with a Curved Trunk) (to get absorbed in His Conscious Form),
May that Danti (One with a Tusk) awaken (our Consciousness),

(The visible Form of Ganapati is as follows) His Face has a single Tusk; He has Four Hands; with two of His Hands, he is holding Noose and Goad,
With His third Hand, He is holding a Tusk, and with His fourth Hand He is showing the gesture of Boon-Giving; His Flag is having the Emblem of a Rat,
His Form is having a Beautiful Reddish Glow, with a Large Belly and with Large Ears like Fans; He is wearing Red Garments,
His Form is anointed with Red Fragrant Paste, and He is worshipped with Red Flowers,

The Heart of this Lord throbs with the Devotees (with empathy, He being the in-dweller); And He has descended for the Cause of the World; He is Imperishable,
He manifested during the beginning of Creation within the manifested Nature, (He manifested) from the Supreme Purusha,
He who meditates on Him in this way every day is the best Yogi among the Yogis,

(Ganapati Mala Mantra) Salutations to the Lord of all Human Beings,
Salutations to the Lord of all Ganas,
Salutations to the Lord of all Pramathas,
Salutations to You, the One with a Large Belly and a Single Tusk,
Salutations to the One Who is the Remover of all Obstacles, Who is the Son of Lord Shiva and is a personification of Boon-Giving,

He who studies this Atharvashirsha (with Shraddha), will become fit to realize Brahman,
He will not be tied down by any obstacles,
Happiness will increase within his consciousness, wherever he is,
He will get freed from the five grave Sins,

Studying this in the evening will destroy the sins committed during the day,
Studying this in the morning will destroy the sins committed during the night,
Joining both in the evening and morning, will make a sinful person sinless,
Studying everywhere will remove the obstacles, …
The Devotee will obtain Dharma, Artha, Kama (right desires fulfilled) and Moksha,

This Atharvasirsha is not to be given to undeserving Persons,
If anyone gives this out of attachment to someone (despite knowing the person to be undeserving), he becomes a sinner,
When thousand Parayana of this Atharva Shirsha is done by deep study (and Contemplation), then by this, Siddhi (spiritual attainments) will be attained,

He who anoints Ganapati with this Upanishad (i.e. worships Ganapati as Brahman-Consciousness) becomes a fluent Speaker (Vagmi),
He who fasts on Chaturdasi and recites this Upanishad becomes filled with Knowledge (becomes Vidyavan),
This is the word of the Atharvana Rishi,
He gains the Knowledge of the envelope of Brahman (understands Brahma Vidya), and thereafter does not have any fear anytime,

He who worships (Ganapati) with tender Durva grass will become prosperous like Kubera,
He who worships (Ganapati) with parched rice will become glorious,
He will (also) become Medhavan (filled with Medha or retentive capacity of the mind),
He who worships (Ganapati) with thousand Modakas (a sweet), he will obtain his Desires,
He who worships (Ganapati) with twigs dipped in ghee, he obtains everything, he obtains everything,

He who makes eight Brahmins receive this Upanishad (i.e. either teaches this Upanishad to eight Brahmins or recites this in the company of eight Brahmins in the Satsang of pure-souled persons) becomes filled with the splendor of the Sun,

He who recites this during Solar Eclipse on the bank of a great river or in front of the image of Ganapati, becomes Mantra-Siddha,
He becomes free from great obstacles,
He becomes free from great vices,

He becomes free from sins or situations which as if drowns the life in a river,
He becomes All-Knowing, He becomes All-Knowing,
This indeed is the Veda (the ultimate Knowledge),
Thus ends the Upanishad
Om, Shanti, Shanti, Shanti (May this bring Peace to all at all the three levels – Adhibhautika, Adhidaivika and Adhyatmika)



श्री गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ करने से भक्त को विशेष फल प्राप्त होता है। यह पाठ उन लोगों के लिए अत्यंत लाभकारी है, जो अपने जीवन में विभिन्न समस्याओं या विघ्नों का सामना कर रहे हैं। भक्त अपने सामर्थ्य के अनुसार इसे 108 या 1008 बार पढ़ने का संकल्प ले सकते हैं। इस संकल्प के दौरान जातक को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वह जिस प्रयोजन के लिए गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ करना चाहता है, उसका स्पष्ट उल्लेख संकल्प में करे। इससे उनकी मनोकामनाएँ पूरी होने में अधिक सहायता मिलती है।

अथर्ववेद के अनुसार, जो भक्त अपने मन को शांत करके, आंखें बंद कर, किसी भी समय भगवान गणेश को अपने समक्ष उपस्थित मानते हुए इस स्तोत्र का जाप करते हैं, उन्हें सभी प्रकार के विघ्नों से मुक्ति मिलती है। इस प्रक्रिया में ध्यान और श्रद्धा का विशेष महत्व है। गणेश जी की उपासना करने से भक्त अपने सभी दुखों और बाधाओं को दूर कर सकते हैं, और अंततः मोक्ष की प्राप्ति करते हैं।

श्री गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह एक गहरी आध्यात्मिक साधना है, जो व्यक्ति को मानसिक और आत्मिक रूप से मजबूत बनाती है। इस पाठ के माध्यम से भक्त अपने मन में सकारात्मकता और शांति का अनुभव करते हैं, जिससे उनका जीवन और भी सार्थक और सुखद हो जाता है।

इसलिए, गणपति अथर्वशीर्ष का नियमित पाठ न केवल जीवन में बाधाओं को दूर करता है, बल्कि यह व्यक्ति को उच्चतम आध्यात्मिक लक्ष्यों की ओर भी अग्रसर करता है। इसके द्वारा प्राप्त फल सिर्फ भौतिक ही नहीं, बल्कि आध्यात्मिक भी होते हैं, जो जीवन के विभिन्न पहलुओं को संतुलित और समृद्ध बनाते हैं। इस प्रकार, गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ करना एक महत्वपूर्ण साधना है, जो भक्तों को हर क्षेत्र में सफलता और समृद्धि की ओर ले जाता है।


1. गणेश अथर्वशीर्ष पाठ कैसे करें?

गणेश अथर्वशीर्ष पाठ करने के लिए कुछ विशेष विधियों का पालन करना आवश्यक होता है। सबसे पहले, एक स्वच्छ और शांत स्थान का चयन करें, जहाँ बैठकर पाठ किया जा सके। पाठ से पहले स्नान करके स्वयं को शुद्ध कर लें और गणेश जी की मूर्ति या चित्र के सामने बैठें। एक साफ आसन पर बैठकर दीपक, अगरबत्ती और फूल आदि की व्यवस्था करें, जिससे पूजा की विधि पूरी हो सके।

पाठ शुरू करने से पहले भगवान गणेश का ध्यान करें और संकल्प लें कि आप किस उद्देश्य के लिए यह पाठ कर रहे हैं। गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ धीमी और स्पष्ट ध्वनि में करना चाहिए, ताकि आप प्रत्येक शब्द का सही उच्चारण कर सकें। पाठ के दौरान मानसिक एकाग्रता बनाए रखें और गणेश जी की कृपा का अनुभव करें।

अगर संभव हो तो इस पाठ को प्रतिदिन सुबह के समय करना शुभ माना जाता है, क्योंकि सुबह का समय शांति और सकारात्मक ऊर्जा का होता है। गणेश अथर्वशीर्ष का नियमित पाठ व्यक्ति के जीवन में सुख-समृद्धि, मानसिक शांति और विघ्नों से मुक्ति प्रदान करता है। इस पाठ को सामर्थ्य के अनुसार 108 या 1008 बार भी किया जा सकता है, जिससे गणेश जी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। अंत में, भगवान गणेश को प्रणाम करें और प्रसाद वितरण करें। इस पाठ का अभ्यास करने से भक्त को सकारात्मक परिणाम मिलते हैं।

2. अथर्वशीर्ष का अर्थ क्या होता है?

अथर्वशीर्ष” का अर्थ है अथर्ववेद का वह हिस्सा, जो किसी विशेष देवता को समर्पित होता है। “अथर्व” शब्द का संबंध अथर्ववेद से है, जो चार प्रमुख वेदों में से एक है, और “शीर्ष” का अर्थ है शीर्ष स्थान या उच्चतम ज्ञान। इस प्रकार, “अथर्वशीर्ष” उस ज्ञान या स्तुति को संदर्भित करता है, जो किसी विशेष देवता के प्रति सर्वोच्च श्रद्धा और भक्ति के साथ की जाती है। गणेश अथर्वशीर्ष विशेष रूप से भगवान गणेश की महिमा का वर्णन करता है।

गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ भगवान गणेश के गुणों, शक्तियों, और उनके महत्व का वर्णन करता है। इस स्तोत्र में गणेश जी को सर्वोच्च ब्रह्म के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो संसार के सभी कार्यों को संचालित करते हैं। यह स्तोत्र गणेश जी के रूप, कार्य, और उनके प्रभाव को समझने का एक माध्यम है। इसके प्रत्येक श्लोक में गणेश जी की शक्ति और उनकी कृपा का वर्णन होता है, जिससे व्यक्ति को विघ्नों से मुक्ति और सफलता प्राप्त होती है।

गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ भक्त को मानसिक शांति, एकाग्रता और आध्यात्मिक बल प्रदान करता है। इस पाठ को नियमित रूप से करने से भगवान गणेश की कृपा प्राप्त होती है, और जीवन में आने वाले सभी प्रकार के विघ्नों का नाश होता है। इसका उद्देश्य केवल गणेश जी की पूजा नहीं, बल्कि उनकी अद्वितीय महिमा का अनुभव करना और उनके प्रति गहन श्रद्धा का भाव प्रकट करना है।

3. अथर्वशीर्ष हवन क्या है?

अथर्वशीर्ष हवन एक विशेष प्रकार की यज्ञ क्रिया है, जिसमें गणेश अथर्वशीर्ष के मंत्रों का जाप करके हवन किया जाता है। यह हवन भगवान गणेश की कृपा प्राप्त करने और विघ्नों से मुक्ति पाने के लिए किया जाता है। हवन में अग्नि को देवताओं का प्रतीक माना जाता है, और उसमें आहुति देकर भक्त अपने मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए भगवान गणेश से आशीर्वाद मांगते हैं।

अथर्वशीर्ष हवन में सबसे पहले हवन कुंड की स्थापना की जाती है और उसमें अग्नि प्रज्वलित की जाती है। हवन के दौरान गणेश अथर्वशीर्ष के श्लोकों का उच्चारण किया जाता है। प्रत्येक श्लोक के बाद अग्नि में समिधा या हवन सामग्री की आहुति दी जाती है। यह प्रक्रिया भक्त की मानसिक शांति और समृद्धि के लिए की जाती है।

हवन में विशेष प्रकार की सामग्री जैसे गाय का घी, चावल, तिल, और अन्य हवन सामग्रियों का प्रयोग किया जाता है। हवन की समाप्ति पर भगवान गणेश की आरती की जाती है और प्रसाद वितरण किया जाता है। अथर्वशीर्ष हवन व्यक्ति के जीवन में सकारात्मकता और समृद्धि लाता है और उसकी मनोकामनाओं को पूर्ण करने में सहायक होता है। नियमित रूप से इस हवन को करने से गणेश जी की कृपा प्राप्त होती है और विघ्नों का नाश होता है।

4. गणपति का पूरा नाम क्या है?

गणपति का पूरा नाम “गजानन गणपति” है। “गणपति” का अर्थ है गणों के अधिपति या स्वामी। “गण” का तात्पर्य देवताओं, मनुष्यों, और अन्य जीवों के समूह से होता है, और “पति” का अर्थ स्वामी होता है। इस प्रकार, गणपति वह देवता हैं, जो सभी गणों के अधिपति हैं और उनकी रक्षा और मार्गदर्शन करते हैं।

गणपति को “विघ्नहर्ता” के रूप में भी जाना जाता है, जिसका अर्थ है वह जो सभी विघ्नों और बाधाओं को दूर करते हैं। उनका दूसरा नाम “गजानन” है, जिसमें “गज” का अर्थ हाथी और “आनन” का अर्थ मुख होता है। इस नाम के पीछे की कथा यह है कि गणेश जी का मुख हाथी जैसा है, जो उनकी विशेष पहचान है।

गणपति के अन्य प्रसिद्ध नामों में विनायक, एकदंत, लंबोदर, और विघ्नराज शामिल हैं। इन सभी नामों का उल्लेख विभिन्न शास्त्रों और पुराणों में किया गया है, जो गणेश जी के विभिन्न गुणों और शक्तियों का प्रतीक हैं। भक्त गणेश जी को उनके विभिन्न नामों से पुकारते हैं, और प्रत्येक नाम के पीछे उनकी कोई विशेष कथा और महत्व छिपा होता है। गणपति का स्मरण करने से जीवन में आने वाले सभी विघ्नों का नाश होता है, और व्यक्ति को सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।

हवन में कितनी आहुति देनी चाहिए?

हवन में आहुति देने की संख्या हवन की विधि, उद्देश्य और संकल्प पर निर्भर करती है। सामान्यत: हवन में आहुति की संख्या 108 मानी जाती है, जो एक पवित्र और शुभ संख्या मानी जाती है। यह संख्या 108 के महत्व से जुड़ी है, जो हिन्दू धर्म में विशेष रूप से महत्वपूर्ण मानी जाती है। इसके अलावा, कुछ विशेष हवनों में आहुति की संख्या 1008 तक भी जा सकती है, जो अधिक शक्ति और फल देने वाला माना जाता है।

हर आहुति के साथ “स्वाहा” मंत्र का उच्चारण किया जाता है, और आहुति अग्नि में दी जाती है। आहुति देने का उद्देश्य भगवान को समर्पित करना होता है, और इसके माध्यम से भक्त अपने मनोकामनाओं की पूर्ति की कामना करता है।

हवन के दौरान आहुति देते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि सामग्री शुद्ध और पवित्र हो। सामान्यतः हवन सामग्री में गाय का घी, तिल, चावल, गुड़, और विशेष प्रकार की जड़ी-बूटियाँ होती हैं, जिन्हें अग्नि में समर्पित किया जाता है। आहुति देने का तरीका भी महत्वपूर्ण होता है। दाहिने हाथ से समिधा या सामग्री लेकर अग्नि में डालनी चाहिए और मंत्रों का जाप करना चाहिए।

आहुति की सही संख्या और विधि का पालन करने से हवन का प्रभाव अधिक होता है, और भक्त को अपने प्रयासों का शुभ फल मिलता है। आहुति देने का मुख्य उद्देश्य भगवान से आशीर्वाद प्राप्त करना और मन की शुद्धि करना होता है।

हवन में कौन सा मंत्र बोलते हैं?

हवन के दौरान बोले जाने वाले मंत्रों का चयन हवन के उद्देश्य और देवता के आधार पर किया जाता है। यदि हवन गणपति जी के लिए किया जा रहा है, तो “ॐ गं गणपतये नमः” मंत्र का उच्चारण प्रमुख होता है। इस मंत्र के साथ “स्वाहा” जोड़कर आहुति दी जाती है। यह मंत्र भगवान गणेश की स्तुति के लिए है और हवन के दौरान उनकी कृपा प्राप्त करने का माध्यम बनता है।

इसके अलावा, “सर्वदेवता हवन” में विविध देवताओं के नाम से संबंधित मंत्र बोले जाते हैं। हवन के दौरान बोले जाने वाले अन्य सामान्य मंत्रों में “ॐ स्वाहा” शामिल होता है, जो हवन में आहुति देने का विशेष मंत्र है। यह मंत्र अग्नि देवता को समर्पित होता है, और आहुति के साथ उनका आह्वान किया जाता है।

हवन के दौरान मंत्रों का सही उच्चारण बहुत महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि यह हवन की शुद्धता और उसकी प्रभावशीलता को निर्धारित करता है। मंत्रों के साथ दी गई आहुति भक्त के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और शांति का संचार करती है।

हवन के अंत में “शांति पाठ” किया जाता है, जिसमें “ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः” का उच्चारण होता है। यह पाठ विश्व में शांति, सुख, और समृद्धि की कामना के साथ किया जाता

Hemlata
Hemlatahttps://www.chalisa-pdf.com
Ms. Hemlata is a prominent Indian author and spiritual writer known for her contributions to the realm of devotional literature. She is best recognized for her work on the "Chalisa", a series of devotional hymns dedicated to various Hindu deities. Her book, available on Chalisa PDF, has garnered widespread acclaim for its accessible presentation of these spiritual texts.
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