Wednesday, September 11, 2024
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कबीर अमृतवाणी – Kabir Amritwani PDF 2024-25

कबीर अमृतवाणी (Kabir Amritwani PDF) एक अद्वितीय और महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है जो संत कबीर के विचारों, उपदेशों और जीवन दर्शन का संग्रह है। कबीर, 15वीं सदी के महान संत और समाज सुधारक, अपने दोहों और साखियों के माध्यम से समाज में व्याप्त अंधविश्वासों, कुरीतियों और जातिवाद के खिलाफ आवाज उठाते थे। उनकी वाणी में सरलता, सच्चाई और जनसामान्य की समस्याओं का समाधान मिलता है।

कबीर अमृतवाणी के माध्यम से पाठक कबीर के गहरे विचारों को समझ सकते हैं और उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं से प्रेरणा प्राप्त कर सकते हैं। यह ग्रंथ उन सभी के लिए अमूल्य धरोहर है जो मानवता, प्रेम, और समरसता के मार्ग पर चलना चाहते हैं। संत कबीर के विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने उनके समय में थे, और कबीर अमृतवाणी हमें उनके मार्गदर्शन का सजीव प्रमाण प्रदान करती है।



सद्गुरु के परताप तैं मिटि गया सब दुःख दर्द।
कह कबीर दुविधा मिटी, गुरु मिलिया रामानंद ॥

गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय |
बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय ||

ऐसी वाणी बोलिए, मुन का आपा खोए |
अपना तन शीतल करे, औरां को सुख होए ||

बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर |
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर ||

निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय, |
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय ||

दुःख में सुमिरन सब करे सुख में करै न कोय |
जो सुख में सुमिरन करे दुःख काहे को होय ||

माटी कहै कुम्हार से, तू क्या रौंदे मोय।
इक दिन ऐसो होयगो, मैं रौंदूंगी तोय ॥

कस्तूरी कुंडली बसै, मृग ढूंढे बन मांहि
ऐसे घटि घटि राम हैं, दुनिया देखै नांहि ॥

बहुत दिनन की जोवती, बाट तुम्हारी राम।
जिव तरसै तुझ मिलन कूँ, मनि नाहीं विश्राम

जहाँ दया तहँ धर्म है, जहाँ लोभ तहँ पाप।
जहाँ क्रोध तहँ काल है, जहाँ छिमा तहँ आप

काल करै सो आज कर, आज करै सो अब्ब।
पल में परलै होयगा, बहुरि करैगा कब्ब ||

दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करै न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे होय ॥

जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान ।
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान ॥


कबीर दास जी के 10 प्रसिद्ध दोहे?

माला फेरत जुग भया, गया न मन का फेर।
कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।

दुख में सुमिरन सब करें, सुख में करे न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुख काहे को होय।

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।

पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।

माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रोंदे मोय।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंदूगी तोय।

पानी में मीन पियासी, मोहे सुन-सुन आवै हांसी।
ज्यों घट भीतर आत्मा, बिरला बुझे कोई।

कबीरा खड़ा बाजार में, मांगे सबकी खैर।
न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर।

जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि है मैं नाहिं।
प्रेम गली अति सांकरी, तामें दो न समाहिं।

निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय।
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।

ज्यों तिल माहि तेल है, ज्यों चकमक में आग।
तेरा साईं तुझ में है, जाग सके तो जाग।

नहाये धोये क्या हुआ जो मन मैल न जाए मीन सदा जल में रहे धोये बास न जाए?

यह कबीर का प्रसिद्ध दोहा नहीं है, बल्कि एक लोकप्रिय भजन का अंश है। इस भजन में कबीर का संदेश है कि बाहरी स्वच्छता का कोई महत्व नहीं यदि मन में मैल और बुराई है। मछली हमेशा पानी में रहती है फिर भी उसकी गंध नहीं जाती, उसी प्रकार बाहरी सफाई से कुछ नहीं होता अगर मन की सफाई नहीं होती।

कबीर की उलटबांसी अर्थ सहित?

कबीर की उलटबांसी उनके रहस्यमय और गूढ़ उपदेश होते हैं, जिन्हें उलटबांसी कहा जाता है। एक उदाहरण देखें:

सिर पर बोझ रखे फिरै, ज्यूं गदहा बिन काम।
उलटबांसी कह कबीर, समझे ब्रह्म ग्यानी नाम।

अर्थ: जो व्यक्ति बिना समझे, केवल दिखावे के लिए धर्म का बोझ उठाए फिरता है, वह गधे के समान है। कबीर कहते हैं कि इस उलटबांसी को वही समझ सकता है जो ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर चुका हो।

कबीर दास जी के प्रेम के दोहे?

कबिरा तेरी झोपड़ी, गल कटीयन के पास।
जो करैंगे सो भरेंगे, तू क्यों भया उदास।

प्रेम न बाड़ी ऊपजै, प्रेम न हाट बिकाय।
राजा परजा जेहि रूचि, सीस देई ले जाय।

कबिरा सोई प्रेम रस, जो ऊसर में होय।
सींचे सींचे प्रेम रस, तब हरियाली होय।

प्रीतम गली अति सांकरी, तामें दो न समाहिं।
जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि है मैं नाहिं।

कबीर तन पंछी भया, जहां मन तहाँ उड़ि जाइ।
जो जैसी संगति करै, सो तैसा ही फल पाइ।

रहीम के कौन से दोहे अधिक प्रसिद्ध हैं?

रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर न जुड़े, जुड़े गाँठ परि जाय।

रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।
जहां काम आवे सुई, कहा करै तलवारि।

बड़ बड़े को छोटो कहा, रहीमन हसि हाँसि।
गिरा ऊंच पर ओछा होय, सके तो पकड़ि रस्सासि।

तरुवर फल नहिं खात हैं, सरवर पियहि न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संपत्ति सहे सुजान।

जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग।
चन्दन विष व्यापे नहीं, लिपटे रहत भुजंग।

Hemlata
Hemlatahttps://www.chalisa-pdf.com
Ms. Hemlata is a prominent Indian author and spiritual writer known for her contributions to the realm of devotional literature. She is best recognized for her work on the "Chalisa", a series of devotional hymns dedicated to various Hindu deities. Her book, available on Chalisa PDF, has garnered widespread acclaim for its accessible presentation of these spiritual texts.
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