कबीर अमृतवाणी (Kabir Amritwani PDF) एक अद्वितीय और महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है जो संत कबीर के विचारों, उपदेशों और जीवन दर्शन का संग्रह है। कबीर, 15वीं सदी के महान संत और समाज सुधारक, अपने दोहों और साखियों के माध्यम से समाज में व्याप्त अंधविश्वासों, कुरीतियों और जातिवाद के खिलाफ आवाज उठाते थे। उनकी वाणी में सरलता, सच्चाई और जनसामान्य की समस्याओं का समाधान मिलता है।
कबीर अमृतवाणी के माध्यम से पाठक कबीर के गहरे विचारों को समझ सकते हैं और उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं से प्रेरणा प्राप्त कर सकते हैं। यह ग्रंथ उन सभी के लिए अमूल्य धरोहर है जो मानवता, प्रेम, और समरसता के मार्ग पर चलना चाहते हैं। संत कबीर के विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने उनके समय में थे, और कबीर अमृतवाणी हमें उनके मार्गदर्शन का सजीव प्रमाण प्रदान करती है।
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संत कबीर के उपदेश PDF में
कबीर अमृतवाणी (Kabir Amritwani PDF)
Kabir Amritwani Lyrics with Meaning
सद्गुरु के परताप तैं मिटि गया सब दुःख दर्द।
कह कबीर दुविधा मिटी, गुरु मिलिया रामानंद ॥
गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय |
बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय ||
ऐसी वाणी बोलिए, मुन का आपा खोए |
अपना तन शीतल करे, औरां को सुख होए ||
बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर |
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर ||
निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय, |
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय ||
दुःख में सुमिरन सब करे सुख में करै न कोय |
जो सुख में सुमिरन करे दुःख काहे को होय ||
माटी कहै कुम्हार से, तू क्या रौंदे मोय।
इक दिन ऐसो होयगो, मैं रौंदूंगी तोय ॥
कस्तूरी कुंडली बसै, मृग ढूंढे बन मांहि
ऐसे घटि घटि राम हैं, दुनिया देखै नांहि ॥
बहुत दिनन की जोवती, बाट तुम्हारी राम।
जिव तरसै तुझ मिलन कूँ, मनि नाहीं विश्राम
जहाँ दया तहँ धर्म है, जहाँ लोभ तहँ पाप।
जहाँ क्रोध तहँ काल है, जहाँ छिमा तहँ आप
काल करै सो आज कर, आज करै सो अब्ब।
पल में परलै होयगा, बहुरि करैगा कब्ब ||
दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करै न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे होय ॥
जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान ।
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान ॥
कबीर अमृतवाणी PDF: आध्यात्मिक अध्ययन के लिए विस्तृत व्याख्या
कबीर अमृतवाणी, संत कबीर के गहन और प्रेरणादायक उपदेशों का संग्रह है, जो मानव जीवन को सही दिशा देने और आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्रदान करने में सहायक है। संत कबीर के दोहे और भजनों में छिपा ज्ञान न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से बल्कि व्यावहारिक जीवन में भी अत्यंत उपयोगी है।
कबीर अमृतवाणी PDF एक ऐसा माध्यम है जो उनके उपदेशों को सरलता से समझने और अपने जीवन में अपनाने में मदद करता है। यह PDF खासतौर पर उन लोगों के लिए उपयोगी है जो आध्यात्मिक अध्ययन के प्रति रुचि रखते हैं। इसमें कबीर के अमूल्य विचार, भजनों की व्याख्या और उनके गूढ़ संदेशों को विस्तार से समझाया गया है।
कबीर अमृतवाणी पढ़ने से आपको आत्मा की शुद्धता, सत्य और ईश्वर के प्रति प्रेम का अनुभव होगा। इसके माध्यम से आप “मन के मैल” को साफ कर अपने जीवन में शांति और स्थिरता ला सकते हैं।
इस PDF को आप आसानी से डाउनलोड कर सकते हैं और नियमित रूप से इसका अध्ययन कर सकते हैं। यह खासतौर पर उन भक्तों के लिए उपयुक्त है जो संत कबीर के जीवन-दर्शन को गहराई से समझना चाहते हैं।
कबीर अमृतवानी: वो अनसुने रहस्य जो आपको चौंका देंगे!
कबीर के अमृत से सिंचित मन की बात…
“कबीरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर।
ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर।”
इन पंक्तियों से कौन परिचित नहीं? कबीर दास… एक नाम जो सदियों से भारतीय चेतना में अमृत की तरह बहता आ रहा है। उनकी ‘अमृतवानी’ – उनके दोहे, साखियाँ, पद और शब्द – सिर्फ काव्य नहीं, जीवन जीने का सूत्र हैं। पर क्या आप जानते हैं कि इस अथाह सागर के भीतर कितने अनदेखे मोती छिपे हैं? कबीर के बारे में जो कुछ हम जानते हैं, उसकी तुलना में जो हम नहीं जानते, वह शायद कहीं ज्यादा रोचक और चौंकाने वाला है। आइए, आज डूबते हैं कबीर अमृतवानी के उन्हीं गहरे, कम चर्चित, पर अद्भुत पहलुओं में।
1. “कबीर” क्या सिर्फ एक नाम था? शायद एक खिताब था!
- हम सब जानते हैं कि उनका जन्म एक विधवा ब्राह्मणी के घर हुआ और लहरतारा तालाब के किनारे नीरु और नीमा नामक जुलाहे दंपत्ति ने उन्हें पाला। पर क्या आप जानते हैं कि ‘कबीर’ शब्द की उत्पत्ति के बारे में एक दिलचस्प सिद्धांत है?
- अरबी मूल का रहस्य: कुछ विद्वान मानते हैं कि ‘कबीर’ अरबी शब्द ‘अल-कबीर’ (अल्लाह का एक नाम, जिसका अर्थ है ‘महान’ या ‘विशाल’) से लिया गया है। यह इस्लामी सूफी परंपरा में भी प्रचलित है। क्या यह संभव है कि कबीर के गुरु रामानंद ने या किसी सूफी संत ने उन्हें उनकी विलक्षणता के कारण यह उपाधि दी हो? क्या ‘कबीर’ उनका जन्म का नाम नहीं, बल्कि एक सम्मानसूचक खिताब था जो उनकी पहचान बन गया? यह विचार उनकी व्यापक, सर्वसमावेशक आध्यात्मिक दृष्टि को और भी सार्थक बनाता है।
2. रचनाओं का विशाल भंडार: क्या सब कुछ सचमुच उनका है?
- कबीर ग्रंथावली में हजारों पद, साखियाँ और शब्द हैं। परंतु, यहां एक बड़ा प्रश्न उठता है:
- सामूहिक चेतना का प्रवाह: कबीर की परंपरा में ‘कबीर पंथ’ का गहरा योगदान रहा है। यह माना जाता है कि कबीर के बाद, उनके प्रमुख शिष्यों (जैसे धर्मदास) और पंथ के अन्य विचारवंत संतों ने भी कबीर की शैली और विचारधारा में रचनाएँ कीं। इन्हें बाद में ‘कबीर वाणी’ में ही शामिल कर लिया गया। क्या हम जो ‘कबीर अमृतवानी’ पढ़ते हैं, वह पूर्णतः एक व्यक्ति की रचना है, या एक पूरी आध्यात्मिक परंपरा का सामूहिक प्रस्फुटन है? यह जानना मुश्किल है, पर यह तथ्य कबीर के विचारों की व्यापकता और उनके प्रभाव की गहराई को दर्शाता है।
3. लिखित नहीं, मौखिक था मूल खजाना: शिष्यों की याददाश्त का चमत्कार!
- यह बात अक्सर अनकही रह जाती है:
- अनपढ़ कबीर, लिखित ग्रंथ कैसे? कबीर स्वयं पढ़े-लिखे नहीं थे। उनकी सारी वाणी मौखिक थी – सत्संग में बोली गई, गाई गई। उनके शिष्यों ने इन बातों को कंठस्थ किया, याद रखा और फिर आगे प्रचारित किया। उनकी अमर वाणी का संरक्षण और प्रसार पूरी तरह उनके शिष्यों की स्मरण शक्ति और भक्ति पर निर्भर था! यह अपने आप में एक आश्चर्यजनक तथ्य है। लिखित रूप तो बहुत बाद में, उनके निधन के कई दशकों बाद आया।
4. “बीजक”: कबीर पंथ का ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ – पर अलग!
- कबीर की रचनाओं का सबसे प्रामाणिक और पुराना संकलन ‘बीजक’ है। पर यह क्या है?
- धर्मदास की भूमिका: ‘बीजक’ को संकलित करने का श्रेय मुख्यतः कबीर के शिष्य धर्मदास को जाता है। यह कबीर पंथ के लिए वही मौलिक ग्रंथ है जो सिखों के लिए गुरु ग्रंथ साहिब है।
- विवादित स्वरूप: दिलचस्प बात यह है कि ‘बीजक’ के कई संस्करण हैं और इनमें काफी भिन्नता है। कौन सा संस्करण सबसे प्रामाणिक है, यह विद्वानों में विवाद का विषय रहा है। यह विविधता भी कबीर वाणी के मौखिक और बाद में लिखित होने की प्रक्रिया को दर्शाती है।
- सिख परंपरा का अलग संकलन: गुरु ग्रंथ साहिब में कबीर के 500 से अधिक पद शामिल हैं। यह संकलन ‘बीजक’ से काफी अलग है और कबीर पंथ के लोग अक्सर ‘बीजक’ को ही प्रामाणिक मानते हैं। यह दोहरा संकलन कबीर की सार्वभौमिक स्वीकृति का प्रमाण है।
5. “राम” कबीर के यहाँ कौन? भक्ति का अनोखा ताना-बाना!
- कबीर अक्सर ‘राम’ का जाप करते दिखाई देते हैं। पर क्या यह भगवान विष्णु के अवतार श्रीराम हैं?
- निर्गुण का नाम: कबीर के ‘राम’ सगुण (मूर्त रूप वाले) नहीं हैं। उनके लिए ‘राम’ एक सांकेतिक नाम है निराकार, निर्गुण परमब्रह्म के लिए। वे कहते हैं – “राम रमैया राम है, नाम बड़ा अधार।” यहाँ राम का अर्थ है वह परम तत्व जो सर्वत्र व्याप्त है।
- सूफी प्रभाव का स्पर्श: कुछ विद्वान मानते हैं कि ‘राम’ शब्द का यह निर्गुण प्रयोग इस्लामी सूफी परंपरा के ‘इश्क’ (प्रेम) और ‘हक़’ (सत्य) की अवधारणा से प्रभावित हो सकता है। कबीर ने भक्ति की भाषा को एक अद्वितीय सार्वभौमिक आयाम दिया।
6. क्रांतिकारी नारीवादी? जाति के साथ लिंगभेद पर भी प्रहार!
- कबीर को जाति व्यवस्था के कट्टर आलोचक के रूप में जाना जाता है। पर उनकी नजर में नारी की स्थिति क्या थी?
- स्त्री को ‘नारी’ नहीं, ‘शक्ति’ की दृष्टि: कबीर ने स्त्री को केवल भोग्या या माया के रूप में देखने वाली सामाजिक मानसिकता को ध्वस्त किया। उन्होंने स्त्री को भी उसी आत्मा का रूप बताया जो पुरुष में है:
- “स्त्री पुरुष एक ही जानि, दोनों एक ही रूप।”
- “नारी तो हम भी जानिये, पीव की प्यारी जान।” (यहाँ ‘पीव’ प्रभु/परमात्मा है)।
- पर्दा प्रथा पर तीखा व्यंग्य: उन्होंने सती प्रथा, बाल विवाह और पर्दा प्रथा जैसी कुरीतियों पर भी करारी चोट की:
- “घूंघट में मुंह छिपावै, क्या चेरी क्या रान?
जब आई दुनिया में, भेष नारी की जान।” (घूंघट में मुंह छिपाना क्या चेरी और क्या रानी का काम? जब दुनिया में आई, तो नारी का भेष ही जाना गया – मतलब, नारी होना ही उसकी पहचान है, छिपाने की क्या बात?)
- “घूंघट में मुंह छिपावै, क्या चेरी क्या रान?
7. विज्ञान के आश्चर्यजनक सूत्र? आधुनिक भौतिकी से मिलते-जुलते विचार!
- कबीर की वाणी में कई ऐसी बातें हैं जो आधुनिक वैज्ञानिक खोजों से अद्भुत समानता रखती हैं:
- सापेक्षता का संकेत? “काल करै सो आज हो, आज करै सो अब।” (कल जो करना है वह आज करो, आज जो करना है वह अभी करो) – यह समय की सापेक्षता और वर्तमान क्षण के महत्व को दर्शाता है, जो आधुनिक भौतिकी की एक मूलभूत अवधारणा है।
- ऊर्जा संरक्षण का आभास? “जल में कुंभ, कुंभ में जल है, बाहर भीतर पानी। फूटा कुंभ जल जलहिं समाना, यह तथ कथौ गियानी।” (जल में घड़ा और घड़े में जल है, बाहर भीतर पानी। घड़ा फूटा तो जल जल में मिल गया, यही तत्वज्ञानी जानते हैं।) यह आत्मा (जल) और शरीर (घड़ा) के संबंध को दर्शाने के साथ ही ऊर्जा के संरक्षण और विश्व की एकात्मकता का भी बोध कराता है – कुछ-कुछ E=mc² की भावना।
- क्वांटम अनिश्चितता का संकेत? उनकी पूरी दृष्टि ही निश्चितता के बजाय प्रश्न करने, संदेह करने और अनुभव पर जोर देने की है, जो वैज्ञानिक पद्धति का आधार है।
8. संगीत से परे: वो राग जो खो गए या बदल गए?
- कबीर के पद विभिन्न रागों में गाए जाते हैं। पर एक रोचक बात:
- मूल धुनों का रहस्य: यह माना जाता है कि कबीर ने अपने पदों को गाने के लिए कुछ विशिष्ट, शायद स्थानीय या स्वतः स्फूर्त धुनों (रागों या रागिनियों) का प्रयोग किया होगा। समय के साथ, जैसे-जैसे उनके पद शास्त्रीय संगीत की मुख्यधारा में शामिल हुए, उन्हें मौजूदा रागों (जैसे भैरवी, यमन, बिलावल, सोरठ) में ढाला गया। कबीर की मूल संगीतात्मक अभिव्यक्ति क्या थी? क्या कुछ ऐसे ‘कबीरी राग’ थे जो अब विलुप्त हो गए या बदल गए? यह संगीत इतिहास का एक अनसुलझा प्रश्न बना हुआ है।
9. कबीर की मृत्यु: एक नहीं, अनेक किंवदंतियाँ!
- कबीर के जीवन की तरह उनकी मृत्यु भी रहस्यों से घिरी है और उस पर अनेक किंवदंतियाँ प्रचलित हैं:
- मगहर का विवाद: सबसे प्रसिद्ध कथा है कि उन्होंने अपनी मृत्यु मगहर में होने की इच्छा जताई, क्योंकि उस समय यह मान्यता थी कि मगहर में मरने वाला नरक जाता है, जबकि काशी में मरने वाला स्वर्ग। कबीर ने इस अंधविश्वास को तोड़ने के लिए ऐसा किया।
- फूलों का चमत्कार: कहा जाता है कि उनकी मृत्यु के बाद हिंदू और मुसलमान अनुयायियों के बीच उनके शरीर के अंतिम संस्कार को लेकर विवाद हुआ। जब चादर हटाई गई तो वहाँ सिर्फ फूल मिले! हिंदुओं ने उन फूलों का दाह संस्कार किया और मुसलमानों ने उन्हें दफनाया। इस प्रकार मगहर में कबीर की समाधि और मज़ार दोनों बनाए गए। यह कथा उनकी सर्वसमावेशकता और दोनों समुदायों में उनकी समान स्वीकृति का प्रतीक है।
- क्या वास्तव में ऐसा हुआ? ऐतिहासिक प्रमाणों की कमी है। ये कथाएँ कबीर की पौराणिक छवि और उनके द्वारा किए गए सामाजिक विद्रोह को दर्शाती हैं।
10. कबीर का सच्चा जन्मस्थान: काशी या अन्यत्र?
- काशी (वाराणसी) को कबीर का जन्मस्थान माना जाता है। पर कुछ शोधकर्ता इस पर भी सवाल उठाते हैं:
- वैकल्पिक सिद्धांत: कुछ इतिहासकारों और पंथियों का मानना है कि उनका जन्म स्थान वाराणसी नहीं, बल्कि आधुनिक उत्तर प्रदेश के कुछ अन्य स्थान (जैसे बेलहरापट्टी, जिला सुल्तानपुर) या यहाँ तक कि दक्षिण भारत का कोई स्थान भी हो सकता है। इन दावों के पीछे स्थानीय मौखिक परंपराएँ और कुछ ऐतिहासिक संदर्भ हैं।
- असली स्थान क्या मायने रखता है? तथ्य यह है कि कबीर ने स्वयं कभी अपने जन्मस्थान को महत्व नहीं दिया। उनके लिए तो पूरा ब्रह्मांड ही उनका घर था। यह बहस उनकी विरासत की व्यापकता को ही दर्शाती है।
11. कबीर अमृतवानी की असली शक्ति: सामान्य जन की भाषा में असाधारण बात!
- कबीर की सबसे बड़ी विशेषता, जो अक्सर उनकी रहस्यमयता में छिप जाती है:
- लोकभाषा का जादू: कबीर ने संस्कृत या फारसी की जटिलता का सहारा नहीं लिया। उन्होंने आम जनता की बोलचाल की भाषा – सधुक्कड़ी (हिंदी, अवधी, ब्रज, राजस्थानी और फारसी/अरबी शब्दों का मिश्रण) में अपनी बात कही। उनकी भाषा कठोर, सीधी, व्यंग्यपूर्ण और अत्यंत प्रभावशाली थी।
- किस्सों और मुहावरों का प्रयोग: उन्होंने दैनिक जीवन के उदाहरणों (जुलाहे का करघा, बाजार, बर्तन), लोककथाओं और मुहावरों का खूब प्रयोग किया। इससे उनकी गहन आध्यात्मिक बातें एकदम स्पष्ट और हृदयंगम हो गईं। यही कारण है कि आज भी, सैकड़ों साल बाद, एक सामान्य किसान या मजदूर भी कबीर के दोहे को समझ सकता है और उससे प्रेरणा ले सकता है। यह उनकी अमृतवानी की सर्वकालिक सफलता का राज है।
12. कबीर के दोहे: शांति के हथियार, दंगों को रोकने की ताकत!
- कबीर की वाणी सिर्फ आध्यात्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक परिवर्तन का शक्तिशाली हथियार भी रही है। इतिहास में ऐसे प्रसंग हैं जहाँ उनके दोहों ने हिंसा को रोका:
- दंगे रोकने की शक्ति: यह किंवदंती प्रसिद्ध है कि किसी सांप्रदायिक दंगे के दौरान, जब हिंसा चरम पर थी, किसी संत ने कबीर का दोहा गाना शुरू किया: “माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर। कर का मन का डार दे, मन का मनका फेर।” (माला फेरते-फेरते युग बीत गया, पर मन का भ्रम नहीं गया। हाथ की माला छोड़ो और मन के भ्रम को दूर करो)। कहते हैं यह सुनकर दंगाई अपने हथियार डालकर बैठ गए। यह कबीर के शब्दों की अद्भुत शक्ति और उनके सार्वभौमिक शांति संदेश का जीवंत उदाहरण है।
अमृतवानी का अनंत स्रोत
कबीर कोई स्थिर ऐतिहासिक व्यक्ति नहीं हैं। वे एक जीवंत परंपरा हैं, एक चलायमान विचार हैं, एक ऐसा स्रोत हैं जिसमें से हर युग अपनी प्यास बुझाता है। उनकी अमृतवानी के ये अनसुने, अनछुए पहलू हमें याद दिलाते हैं कि कबीर को समझने का मतलब केवल उनके दोहे रटना नहीं, बल्कि उनकी विद्रोही चेतना, उनकी तीखी दृष्टि और उनकी अथाह मानवीयता को आत्मसात करना है।
उनकी वाणी में जीवन के हर संघर्ष, हर प्रश्न, हर अंधविश्वास और हर आशा का समाधान मौजूद है – बस गहराई से देखने और सुनने की जरूरत है। वे कहते हैं:
“बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।”
(बड़ा होना ही काफी नहीं, जैसे खजूर का पेड़ बड़ा तो होता है पर न तो राहगीर को छाया दे पाता है, न उसके फल आसानी से मिलते हैं।)
कबीर खजूर के पेड़ नहीं हैं। वे एक विशाल बरगद हैं, जिसकी छाया में सब आ सकते हैं और जिसके मीठे फल (ज्ञान-अमृत) हर कोई तोड़ सकता है। उनकी अमृतवानी कोई पुरानी किताब नहीं, बल्कि हमारे अंदर बहने वाली वह जीवनदायिनी धारा है जो हमें सच्चा, निर्भीक और प्रेमपूर्ण जीवन जीने की राह दिखाती है। इन अनजाने तथ्यों को जानकर हम इस धारा को और भी नजदीक से महसूस कर सकते हैं।
कबीरा यह गति की हरि की, गाइ न जाइ खरी खोट।
जैसे पानी में पांवड़ा, दुख लागे ना छोट।
(कबीर कहते हैं, भगवान की इस लीला को गाना आसान नहीं, यह कच्चे-पक्के का भेद नहीं जानती। जैसे पानी में पैर रखने पर कोई छोटा-बड़ा नहीं होता, सब एक समान भीगते हैं।)
इसी एकरसता, इसी सार्वभौमिकता में छिपा है कबीर अमृतवानी का सच्चा रहस्य!
FAQs – कबीर अमृतवाणी (Kabir Amrit wani PDF)
कबीर दास जी के 10 प्रसिद्ध दोहे?
माला फेरत जुग भया, गया न मन का फेर।
कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।
दुख में सुमिरन सब करें, सुख में करे न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुख काहे को होय।
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।
माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रोंदे मोय।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंदूगी तोय।
पानी में मीन पियासी, मोहे सुन-सुन आवै हांसी।
ज्यों घट भीतर आत्मा, बिरला बुझे कोई।
कबीरा खड़ा बाजार में, मांगे सबकी खैर।
न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर।
जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि है मैं नाहिं।
प्रेम गली अति सांकरी, तामें दो न समाहिं।
निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय।
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।
ज्यों तिल माहि तेल है, ज्यों चकमक में आग।
तेरा साईं तुझ में है, जाग सके तो जाग।
नहाये धोये क्या हुआ जो मन मैल न जाए मीन सदा जल में रहे धोये बास न जाए?
यह कबीर का प्रसिद्ध दोहा नहीं है, बल्कि एक लोकप्रिय भजन का अंश है। इस भजन में कबीर का संदेश है कि बाहरी स्वच्छता का कोई महत्व नहीं यदि मन में मैल और बुराई है। मछली हमेशा पानी में रहती है फिर भी उसकी गंध नहीं जाती, उसी प्रकार बाहरी सफाई से कुछ नहीं होता अगर मन की सफाई नहीं होती।
कबीर की उलटबांसी अर्थ सहित?
कबीर की उलटबांसी उनके रहस्यमय और गूढ़ उपदेश होते हैं, जिन्हें उलटबांसी कहा जाता है। एक उदाहरण देखें:
सिर पर बोझ रखे फिरै, ज्यूं गदहा बिन काम।
उलटबांसी कह कबीर, समझे ब्रह्म ग्यानी नाम।
अर्थ: जो व्यक्ति बिना समझे, केवल दिखावे के लिए धर्म का बोझ उठाए फिरता है, वह गधे के समान है। कबीर कहते हैं कि इस उलटबांसी को वही समझ सकता है जो ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर चुका हो।
कबीर दास जी के प्रेम के दोहे?
कबिरा तेरी झोपड़ी, गल कटीयन के पास।
जो करैंगे सो भरेंगे, तू क्यों भया उदास।
प्रेम न बाड़ी ऊपजै, प्रेम न हाट बिकाय।
राजा परजा जेहि रूचि, सीस देई ले जाय।
कबिरा सोई प्रेम रस, जो ऊसर में होय।
सींचे सींचे प्रेम रस, तब हरियाली होय।
प्रीतम गली अति सांकरी, तामें दो न समाहिं।
जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि है मैं नाहिं।
कबीर तन पंछी भया, जहां मन तहाँ उड़ि जाइ।
जो जैसी संगति करै, सो तैसा ही फल पाइ।
रहीम के कौन से दोहे अधिक प्रसिद्ध हैं?
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर न जुड़े, जुड़े गाँठ परि जाय।
रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।
जहां काम आवे सुई, कहा करै तलवारि।
बड़ बड़े को छोटो कहा, रहीमन हसि हाँसि।
गिरा ऊंच पर ओछा होय, सके तो पकड़ि रस्सासि।
तरुवर फल नहिं खात हैं, सरवर पियहि न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संपत्ति सहे सुजान।
जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग।
चन्दन विष व्यापे नहीं, लिपटे रहत भुजंग।