Thursday, October 10, 2024
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Hanuman Bahuk PDF – हनुमान बाहुक हिन्दी लिखित PDF 2024-25

हनुमान बाहुक (Hanuman Bahuk) भगवान हनुमान की एक अत्यंत महत्वपूर्ण और शक्तिशाली प्रार्थना है, जिसे गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा था। भगवान हनुमान, जिन्हें भगवान राम का सबसे बड़ा भक्त माना जाता है, शास्त्रों के अनुसार देवी सीता के आशीर्वाद से अमर हैं। कहा जाता है कि जब भी हनुमान चालीसा, रामचरित मानस, या रामायण का पाठ किया जाता है, भगवान हनुमान वहां अवश्य उपस्थित होते हैं।

तुलसीदास जी ने हनुमान बाहुक तब लिखा जब वे असहनीय हाथ के दर्द से पीड़ित थे और कोई भी इलाज उन्हें राहत नहीं दे रहा था। तब उन्होंने भगवान हनुमान की प्रार्थना करते हुए इस काव्य की रचना की और उनकी कृपा से उन्हें तुरंत राहत मिली।

हनुमान बाहुक में कुल 44 छंद हैं, और इसे लगातार 40 दिनों तक पढ़ने से माना जाता है कि मानसिक और शारीरिक कष्टों से मुक्ति मिलती है और जीवन की बाधाएं दूर होती हैं। तुलसीदास जी की कहानी इस बात का प्रमाण है कि भगवान हनुमान अपने भक्तों के हर दुख को हरने में सक्षम हैं, बस शर्त यह है कि भक्त को अपने कर्मों के प्रति ईमानदार रहना चाहिए और किसी भी तरह के बुरे कार्यों से दूर रहना चाहिए।

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Hanuman Bahuk Ka Paath

श्रीगणेशाय नमः
श्रीजानकीवल्लभो विजयते
श्रीमद्-गोस्वामी-तुलसीदास-कृत



छप्पय

सिंधु-तरन, सिय-सोच-हरन, रबि-बाल-बरन तनु ।
भुज बिसाल, मूरति कराल कालहुको काल जनु ।।
गहन-दहन-निरदहन लंक निःसंक, बंक-भुव ।
जातुधान-बलवान-मान-मद-दवन पवनसुव ।।
कह तुलसिदास सेवत सुलभ सेवक हित सन्तत निकट ।
गुन-गनत, नमत, सुमिरत, जपत समन सकल-संकट-विकट ।।१।।

स्वर्न-सैल-संकास कोटि-रबि-तरुन-तेज-घन ।
उर बिसाल भुज-दंड चंड नख-बज्र बज्र-तन ।।
पिंग नयन, भृकुटी कराल रसना दसनानन ।
कपिस केस, करकस लँगूर, खल-दल बल भानन ।।
कह तुलसिदास बस जासु उर मारुतसुत मूरति बिकट ।
संताप पाप तेहि पुरुष पहिं सपनेहुँ नहिं आवत निकट ।।२।।

झूलना

पंचमुख-छमुख-भृगु मुख्य भट असुर सुर, सर्व-सरि-समर समरत्थ सूरो ।
बाँकुरो बीर बिरुदैत बिरुदावली, बेद बंदी बदत पैजपूरो ।।
जासु गुनगाथ रघुनाथ कह, जासुबल, बिपुल-जल-भरित जग-जलधि झूरो ।
दुवन-दल-दमनको कौन तुलसीस है, पवन को पूत रजपूत रुरो ।।३।।

घनाक्षरी

भानुसों पढ़न हनुमान गये भानु मन-अनुमानि सिसु-केलि कियो फेरफार सो ।
पाछिले पगनि गम गगन मगन-मन, क्रम को न भ्रम, कपि बालक बिहार सो ।।
कौतुक बिलोकि लोकपाल हरि हर बिधि, लोचननि चकाचौंधी चित्तनि खभार सो।
बल कैंधौं बीर-रस धीरज कै, साहस कै, तुलसी सरीर धरे सबनि को सार सो ।।४।।

भारत में पारथ के रथ केथू कपिराज, गाज्यो सुनि कुरुराज दल हल बल भो ।
कह्यो द्रोन भीषम समीर सुत महाबीर, बीर-रस-बारि-निधि जाको बल जल भो ।।
बानर सुभाय बाल केलि भूमि भानु लागि, फलँग फलाँग हूँतें घाटि नभतल भो ।
नाई-नाई माथ जोरि-जोरि हाथ जोधा जोहैं, हनुमान देखे जगजीवन को फल भो ।।५

गो-पद पयोधि करि होलिका ज्यों लाई लंक, निपट निसंक परपुर गलबल भो ।
द्रोन-सो पहार लियो ख्याल ही उखारि कर, कंदुक-ज्यों कपि खेल बेल कैसो फल भो ।।
संकट समाज असमंजस भो रामराज, काज जुग पूगनि को करतल पल भो ।
साहसी समत्थ तुलसी को नाह जाकी बाँह, लोकपाल पालन को फिर थिर थल भो ।।६

कमठ की पीठि जाके गोडनि की गाड़ैं मानो, नाप के भाजन भरि जल निधि जल भो ।
जातुधान-दावन परावन को दुर्ग भयो, महामीन बास तिमि तोमनि को थल भो ।।
कुम्भकरन-रावन पयोद-नाद-ईंधन को, तुलसी प्रताप जाको प्रबल अनल भो ।
भीषम कहत मेरे अनुमान हनुमान, सारिखो त्रिकाल न त्रिलोक महाबल भो ।।७

दूत रामराय को, सपूत पूत पौनको, तू अंजनी को नन्दन प्रताप भूरि भानु सो ।
सीय-सोच-समन, दुरित दोष दमन, सरन आये अवन, लखन प्रिय प्रान सो ।।
दसमुख दुसह दरिद्र दरिबे को भयो, प्रकट तिलोक ओक तुलसी निधान सो ।
ज्ञान गुनवान बलवान सेवा सावधान, साहेब सुजान उर आनु हनुमान सो ।।८

दवन-दुवन-दल भुवन-बिदित बल, बेद जस गावत बिबुध बंदीछोर को ।
पाप-ताप-तिमिर तुहिन-विघटन-पटु, सेवक-सरोरुह सुखद भानु भोर को ।।
लोक-परलोक तें बिसोक सपने न सोक, तुलसी के हिये है भरोसो एक ओर को ।
राम को दुलारो दास बामदेव को निवास, नाम कलि-कामतरु केसरी-किसोर को ।।९।।

महाबल-सीम महाभीम महाबान इत, महाबीर बिदित बरायो रघुबीर को ।
कुलिस-कठोर तनु जोरपरै रोर रन, करुना-कलित मन धारमिक धीर को ।।
दुर्जन को कालसो कराल पाल सज्जन को, सुमिरे हरनहार तुलसी की पीर को ।
सीय-सुख-दायक दुलारो रघुनायक को, सेवक सहायक है साहसी समीर को ।।१०।।

रचिबे को बिधि जैसे, पालिबे को हरि, हर मीच मारिबे को, ज्याईबे को सुधापान भो ।
धरिबे को धरनि, तरनि तम दलिबे को, सोखिबे कृसानु, पोषिबे को हिम-भानु भो ।।
खल-दुःख दोषिबे को, जन-परितोषिबे को, माँगिबो मलीनता को मोदक सुदान भो ।
आरत की आरति निवारिबे को तिहुँ पुर, तुलसी को साहेब हठीलो हनुमान भो ।।११।।

सेवक स्योकाई जानि जानकीस मानै कानि, सानुकूल सूलपानि नवै नाथ नाँक को ।
देवी देव दानव दयावने ह्वै जोरैं हाथ, बापुरे बराक कहा और राजा राँक को ।।
जागत सोवत बैठे बागत बिनोद मोद, ताके जो अनर्थ सो समर्थ एक आँक को ।
सब दिन रुरो परै पूरो जहाँ-तहाँ ताहि, जाके है भरोसो हिये हनुमान हाँक को ।।१२।।

सानुग सगौरि सानुकूल सूलपानि ताहि, लोकपाल सकल लखन राम जानकी ।
लोक परलोक को बिसोक सो तिलोक ताहि, तुलसी तमाइ कहा काहू बीर आनकी ।।
केसरी किसोर बन्दीछोर के नेवाजे सब, कीरति बिमल कपि करुनानिधान की ।
बालक-ज्यों पालिहैं कृपालु मुनि सिद्ध ताको, जाके हिये हुलसति हाँक हनुमान की ।।१३।।

करुनानिधान, बलबुद्धि के निधान मोद-महिमा निधान, गुन-ज्ञान के निधान हौ ।
बामदेव-रुप भूप राम के सनेही, नाम लेत-देत अर्थ धर्म काम निरबान हौ ।।
आपने प्रभाव सीताराम के सुभाव सील, लोक-बेद-बिधि के बिदूष हनुमान हौ ।
मन की बचन की करम की तिहूँ प्रकार, तुलसी तिहारो तुम साहेब सुजान हौ ।।१४।।

मन को अगम, तन सुगम किये कपीस, काज महाराज के समाज साज साजे हैं ।
देव-बंदी छोर रनरोर केसरी किसोर, जुग जुग जग तेरे बिरद बिराजे हैं ।
बीर बरजोर, घटि जोर तुलसी की ओर, सुनि सकुचाने साधु खल गन गाजे हैं ।
बिगरी सँवार अंजनी कुमार कीजे मोहिं, जैसे होत आये हनुमान के निवाजे हैं ।।१५।।

सवैया

जान सिरोमनि हौ हनुमान सदा जन के मन बास तिहारो ।
ढ़ारो बिगारो मैं काको कहा केहि कारन खीझत हौं तो तिहारो ।।
साहेब सेवक नाते तो हातो कियो सो तहाँ तुलसी को न चारो ।
दोष सुनाये तें आगेहुँ को होशियार ह्वैं हों मन तौ हिय हारो ।।१६।।

तेरे थपे उथपै न महेस, थपै थिरको कपि जे घर घाले ।
तेरे निवाजे गरीब निवाज बिराजत बैरिन के उर साले ।।
संकट सोच सबै तुलसी लिये नाम फटै मकरी के से जाले ।
बूढ़ भये, बलि, मेरिहि बार, कि हारि परे बहुतै नत पाले ।।१७।।

सिंधु तरे, बड़े बीर दले खल, जारे हैं लंक से बंक मवा से ।
तैं रनि-केहरि केहरि के बिदले अरि-कुंजर छैल छवा से ।।
तोसों समत्थ सुसाहेब सेई सहै तुलसी दुख दोष दवा से ।
बानर बाज ! बढ़े खल-खेचर, लीजत क्यों न लपेटि लवा-से ।।१८।।

अच्छ-विमर्दन कानन-भानि दसानन आनन भा न निहारो ।
बारिदनाद अकंपन कुंभकरन्न-से कुंजर केहरि-बारो ।।
राम-प्रताप-हुतासन, कच्छ, बिपच्छ, समीर समीर-दुलारो ।
पाप-तें साप-तें ताप तिहूँ-तें सदा तुलसी कहँ सो रखवारो ।।१९।।

घनाक्षरी

जानत जहान हनुमान को निवाज्यौ जन, मन अनुमानि बलि, बोल न बिसारिये ।
सेवा-जोग तुलसी कबहुँ कहा चूक परी, साहेब सुभाव कपि साहिबी सँभारिये ।।
अपराधी जानि कीजै सासति सहस भाँति, मोदक मरै जो ताहि माहुर न मारिये ।
साहसी समीर के दुलारे रघुबीर जू के, बाँह पीर महाबीर बेगि ही निवारिये ।।२०।।

बालक बिलोकि, बलि बारेतें आपनो कियो, दीनबन्धु दया कीन्हीं निरुपाधि न्यारिये ।
रावरो भरोसो तुलसी के, रावरोई बल, आस रावरीयै दास रावरो बिचारिये ।।
बड़ो बिकराल कलि, काको न बिहाल कियो, माथे पगु बलि को, निहारि सो निवारिये ।
केसरी किसोर, रनरोर, बरजोर बीर, बाँहुपीर राहुमातु ज्यौं पछारि मारिये ।।२१।।

उथपे थपनथिर थपे उथपनहार, केसरी कुमार बल आपनो सँभारिये ।
राम के गुलामनि को कामतरु रामदूत, मोसे दीन दूबरे को तकिया तिहारिये ।।
साहेब समर्थ तोसों तुलसी के माथे पर, सोऊ अपराध बिनु बीर, बाँधि मारिये ।
पोखरी बिसाल बाँहु, बलि, बारिचर पीर, मकरी ज्यौं पकरि कै बदन बिदारिये ।।२२।।

राम को सनेह, राम साहस लखन सिय, राम की भगति, सोच संकट निवारिये ।
मुद-मरकट रोग-बारिनिधि हेरि हारे, जीव-जामवंत को भरोसो तेरो भारिये ।।
कूदिये कृपाल तुलसी सुप्रेम-पब्बयतें, सुथल सुबेल भालू बैठि कै बिचारिये ।
महाबीर बाँकुरे बराकी बाँह-पीर क्यों न, लंकिनी ज्यों लात-घात ही मरोरि मारिये ।।२३।।

लोक-परलोकहुँ तिलोक न बिलोकियत, तोसे समरथ चष चारिहूँ निहारिये ।
कर्म, काल, लोकपाल, अग-जग जीवजाल, नाथ हाथ सब निज महिमा बिचारिये ।।
खास दास रावरो, निवास तेरो तासु उर, तुलसी सो देव दुखी देखियत भारिये ।
बात तरुमूल बाँहुसूल कपिकच्छु-बेलि, उपजी सकेलि कपिकेलि ही उखारिये ।।२४।।

करम-कराल-कंस भूमिपाल के भरोसे, बकी बकभगिनी काहू तें कहा डरैगी ।
बड़ी बिकराल बाल घातिनी न जात कहि, बाँहूबल बालक छबीले छोटे छरैगी ।।
आई है बनाइ बेष आप ही बिचारि देख, पाप जाय सबको गुनी के पाले परैगी ।
पूतना पिसाचिनी ज्यौं कपिकान्ह तुलसी की, बाँहपीर महाबीर तेरे मारे मरैगी ।।२५।।

भालकी कि कालकी कि रोष की त्रिदोष की है, बेदन बिषम पाप ताप छल छाँह की ।
करमन कूट की कि जन्त्र मन्त्र बूट की, पराहि जाहि पापिनी मलीन मन माँह की ।।
पैहहि सजाय, नत कहत बजाय तोहि, बाबरी न होहि बानि जानि कपि नाँह की ।
आन हनुमान की दुहाई बलवान की, सपथ महाबीर की जो रहै पीर बाँह की ।।२६।।

सिंहिका सँहारि बल, सुरसा सुधारि छल, लंकिनी पछारि मारि बाटिका उजारी है ।
लंक परजारि मकरी बिदारि बारबार, जातुधान धारि धूरिधानी करि डारी है ।।
तोरि जमकातरि मंदोदरी कढ़ोरि आनी, रावन की रानी मेघनाद महँतारी है ।
भीर बाँह पीर की निपट राखी महाबीर, कौन के सकोच तुलसी के सोच भारी है ।।२७।।

तेरो बालि केलि बीर सुनि सहमत धीर, भूलत सरीर सुधि सक्र-रबि-राहु की ।
तेरी बाँह बसत बिसोक लोकपाल सब, तेरो नाम लेत रहै आरति न काहु की ।।
साम दान भेद बिधि बेदहू लबेद सिधि, हाथ कपिनाथ ही के चोटी चोर साहु की ।
आलस अनख परिहास कै सिखावन है, एते दिन रही पीर तुलसी के बाहु की ।।२८।।

टूकनि को घर-घर डोलत कँगाल बोलि, बाल ज्यों कृपाल नतपाल पालि पोसो है ।
कीन्ही है सँभार सार अँजनी कुमार बीर, आपनो बिसारि हैं न मेरेहू भरोसो है ।।
इतनो परेखो सब भाँति समरथ आजु, कपिराज साँची कहौं को तिलोक तोसो है ।
सासति सहत दास कीजे पेखि परिहास, चीरी को मरन खेल बालकनि को सो है ।।२९।।

आपने ही पाप तें त्रिपात तें कि साप तें, बढ़ी है बाँह बेदन कही न सहि जाति है ।
औषध अनेक जन्त्र मन्त्र टोटकादि किये, बादि भये देवता मनाये अधिकाति है ।।
करतार, भरतार, हरतार, कर्म काल, को है जगजाल जो न मानत इताति है ।
चेरो तेरो तुलसी तू मेरो कह्यो राम दूत, ढील तेरी बीर मोहि पीर तें पिराति है ।।३०।।

दूत राम राय को, सपूत पूत बाय को, समत्व हाथ पाय को सहाय असहाय को ।
बाँकी बिरदावली बिदित बेद गाइयत, रावन सो भट भयो मुठिका के घाय को ।।
एते बड़े साहेब समर्थ को निवाजो आज, सीदत सुसेवक बचन मन काय को ।
थोरी बाँह पीर की बड़ी गलानि तुलसी को, कौन पाप कोप, लोप प्रकट प्रभाय को ।।३१।।

देवी देव दनुज मनुज मुनि सिद्ध नाग, छोटे बड़े जीव जेते चेतन अचेत हैं ।
पूतना पिसाची जातुधानी जातुधान बाम, राम दूत की रजाइ माथे मानि लेत हैं ।।
घोर जन्त्र मन्त्र कूट कपट कुरोग जोग, हनुमान आन सुनि छाड़त निकेत हैं ।
क्रोध कीजे कर्म को प्रबोध कीजे तुलसी को, सोध कीजे तिनको जो दोष दुख देत हैं ।।३२।।

तेरे बल बानर जिताये रन रावन सों, तेरे घाले जातुधान भये घर-घर के ।
तेरे बल रामराज किये सब सुरकाज, सकल समाज साज साजे रघुबर के ।।
तेरो गुनगान सुनि गीरबान पुलकत, सजल बिलोचन बिरंचि हरि हर के ।
तुलसी के माथे पर हाथ फेरो कीसनाथ, देखिये न दास दुखी तोसो कनिगर के ।।३३।।

पालो तेरे टूक को परेहू चूक मूकिये न, कूर कौड़ी दूको हौं आपनी ओर हेरिये ।
भोरानाथ भोरे ही सरोष होत थोरे दोष, पोषि तोषि थापि आपनी न अवडेरिये ।।
अँबु तू हौं अँबुचर, अँबु तू हौं डिंभ सो न, बूझिये बिलंब अवलंब मेरे तेरिये ।
बालक बिकल जानि पाहि प्रेम पहिचानि, तुलसी की बाँह पर लामी लूम फेरिये ।।३४।।

घेरि लियो रोगनि, कुजोगनि, कुलोगनि ज्यौं, बासर जलद घन घटा धुकि धाई है ।
बरसत बारि पीर जारिये जवासे जस, रोष बिनु दोष धूम-मूल मलिनाई है ।।
करुनानिधान हनुमान महा बलवान, हेरि हँसि हाँकि फूँकि फौजैं ते उड़ाई है ।
खाये हुतो तुलसी कुरोग राढ़ राकसनि, केसरी किसोर राखे बीर बरिआई है ।।३५।।

सवैया

राम गुलाम तु ही हनुमान गोसाँई सुसाँई सदा अनुकूलो ।
पाल्यो हौं बाल ज्यों आखर दू पितु मातु सों मंगल मोद समूलो ।।
बाँह की बेदन बाँह पगार पुकारत आरत आनँद भूलो ।
श्री रघुबीर निवारिये पीर रहौं दरबार परो लटि लूलो ।।३६।।

घनाक्षरी

काल की करालता करम कठिनाई कीधौं, पाप के प्रभाव की सुभाय बाय बावरे ।
बेदन कुभाँति सो सही न जाति राति दिन, सोई बाँह गही जो गही समीर डाबरे ।।
लायो तरु तुलसी तिहारो सो निहारि बारि, सींचिये मलीन भो तयो है तिहुँ तावरे ।
भूतनि की आपनी पराये की कृपा निधान, जानियत सबही की रीति राम रावरे ।।३७।।

पाँय पीर पेट पीर बाँह पीर मुँह पीर, जरजर सकल पीर मई है ।
देव भूत पितर करम खल काल ग्रह, मोहि पर दवरि दमानक सी दई है ।।
हौं तो बिनु मोल के बिकानो बलि बारेही तें, ओट राम नाम की ललाट लिखि लई है ।
कुँभज के किंकर बिकल बूढ़े गोखुरनि, हाय राम राय ऐसी हाल कहूँ भई है ।।३८।।

बाहुक-सुबाहु नीच लीचर-मरीच मिलि, मुँहपीर केतुजा कुरोग जातुधान हैं ।
राम नाम जगजाप कियो चहों सानुराग, काल कैसे दूत भूत कहा मेरे मान हैं ।।
सुमिरे सहाय राम लखन आखर दोऊ, जिनके समूह साके जागत जहान हैं ।
तुलसी सँभारि ताड़का सँहारि भारि भट, बेधे बरगद से बनाइ बानवान हैं ।।३९।।

बालपने सूधे मन राम सनमुख भयो, राम नाम लेत माँगि खात टूकटाक हौं ।
परयो लोक-रीति में पुनीत प्रीति राम राय, मोह बस बैठो तोरि तरकि तराक हौं ।।
खोटे-खोटे आचरन आचरत अपनायो, अंजनी कुमार सोध्यो रामपानि पाक हौं ।
तुलसी गुसाँई भयो भोंडे दिन भूल गयो, ताको फल पावत निदान परिपाक हौं ।।४०।।

असन-बसन-हीन बिषम-बिषाद-लीन, देखि दीन दूबरो करै न हाय हाय को ।
तुलसी अनाथ सो सनाथ रघुनाथ कियो, दियो फल सील सिंधु आपने सुभाय को ।।
नीच यहि बीच पति पाइ भरु हाईगो, बिहाइ प्रभु भजन बचन मन काय को ।
ता तें तनु पेषियत घोर बरतोर मिस, फूटि फूटि निकसत लोन राम राय को ।।४१।।

जीओं जग जानकी जीवन को कहाइ जन, मरिबे को बारानसी बारि सुरसरि को ।
तुलसी के दुहूँ हाथ मोदक हैं ऐसे ठाँउ, जाके जिये मुये सोच करिहैं न लरि को ।।
मोको झूटो साँचो लोग राम को कहत सब, मेरे मन मान है न हर को न हरि को ।
भारी पीर दुसह सरीर तें बिहाल होत, सोऊ रघुबीर बिनु सकै दूर करि को ।।४२।।

सीतापति साहेब सहाय हनुमान नित, हित उपदेश को महेस मानो गुरु कै ।
मानस बचन काय सरन तिहारे पाँय, तुम्हरे भरोसे सुर मैं न जाने सुर कै ।।
ब्याधि भूत जनित उपाधि काहु खल की, समाधि कीजे तुलसी को जानि जन फुर कै ।
कपिनाथ रघुनाथ भोलानाथ भूतनाथ, रोग सिंधु क्यों न डारियत गाय खुर कै ।।४३।।

कहों हनुमान सों सुजान राम राय सों, कृपानिधान संकर सों सावधान सुनिये ।
हरष विषाद राग रोष गुन दोष मई, बिरची बिरञ्ची सब देखियत दुनिये ।।
माया जीव काल के करम के सुभाय के, करैया राम बेद कहैं साँची मन गुनिये ।
तुम्ह तें कहा न होय हा हा सो बुझैये मोहि, हौं हूँ रहों मौनही बयो सो जानि लुनिये ।।४४।।

Hanuman Bahuk Paath

Shri Ganeshay Namah
Shri Janakivallabho Vijayate
Shrimad-Goswami-Tulsidas-Krit

Chhappaya

Sindhu-taran,Siya-soch-haran, Rabi-baalbaran-tanu |
Bhujbisaal, moorti karaal, kaalhuko kaal janu ||
Gahan-dahan-nirdahan-lanknihsank, bank-bhuv |
Jaatudhaan-balvaan-maan-mad-davanpavansuv ||
KahTulsidas sevat sulabh, sevak hit santat nikat |
Gunganat,namat, sumirat, japat, saman sakal-sankat-bikat || 1 ||


Svaran-saail-sankaskoti-rabi-tarun-tej-ghan |
Urbisaal, bhujdandh chand nakh bajra bajratan ||
Pingnayan, bhrikutee karaal rasnaa dasnaanan |
Kapiskes, karkas langoor, khal-dal bal bhaanan ||
KahTulsidas bas jaasu ur maarutsut moorti bikat |
Santaappaap tehi purush panhi sapnehun nahin aavat nikat || 2 ||


Jhulna

Panchmukh-chamukh-bhrigumukhyabhat-asur-sur,
Sarv-sari-samarsamratth sooro |
Bankurobeer birudaait birudaavlee,
Baidbandee badat paaijpooro ||
Jaasugungaath Raghunaath kah, jasu bal,
Bipul-jal-bharitjag-jaldhi jhooro |
Duvan-dal-damankokaun Tulsees hai
Pavankopoot Rajpoot rooro || 3 ||


Ghanakshari

Bhanusonparrhan hanuman gaye bhanu man-
anumaanisisukeli kiyo pherphaar so |
Paachhilepagni gam gagan magan-man,
Kramkona bhram, kapi baalak-bihaar so ||
Kautukbiloki lokpaal hari har bidhi
Lochananichakaachaundhee chitni khabhaar so |
Balkaaidhaun beerras, dheeraj kai, sahas kai,
Tulsisareer dhare sabniko saar so || 4 ||


Bharatmeinpaarthke rathketu kapiraaj,
Gaajyosuni kururaaj dal halbal bho |
KahayoDron Bheesham sumeersut Mahaabeer,
Beer-ras-baari-nidhijaako bal jal bho ||
Baanarsubhaay baalkeli bhoomi bhaanu laagi,
Phalangphalaanghoonten ghaati nabhtal bho |
Naai-naaimaath jori-jori haath jodha johain,
Hanumandekhe jagjeevanko phal bho || 5 ||


Gopadpayodhi kari holika jyon layee lank,
Nipatnisank parpur galbal bho |
Dron-sopahaar liyo khyaal hee ukhari kar,
Kanduk-jyonkapikhel bel kaaiso phal bho ||
Sankatsamaajasmanjas bho Ramraaj
Kaajjug-poogniko kartal pal bho |
Saahseesamatth Tulsiko naah jaaki baanh,
Lokpaalpaalanko phir thir thal bho || 6 ||


Kamathkeepeethi jaake gorhnikee gaarhain maano
Naapkebhaajan bhari jalnidhi-jal bho |
Jaatudhaan-daavanparaavanko durge bhayo,
Mahaameenbaastimi tomaniko thal bho ||
Kumbhkaran-Ravan-payodnaad-eedhanko
Tulsiprataap jaako prabal anal bho |
Bheeshamkahat mere anumaan Hanuman-
Saarikhotrikaal na trilok mahaabal bho || 7 ||

DootRamrayko, sapoot poot paunko, too
Anjaneekonandan prataap bhoori bhaanu so |
Seey-soch-saman,durit-dosh-daman,
Saranaaye avan, lakhanpriya praan so ||
Dasmukhdusah daridra daribeko bhayo,
Prataktilok aok Tulsi nidhaan so |
Gyan-gunvaanbalvaan sevaa saavdhaan,
Saahebsujaan ur aanu Hanuman so || 8 ||


Davan-duvan-dalbhuvan-bidit bal,
Baidjas gaavat bibudh bandeechor ko |
Paap-taap-timirtuhin-vightan-patu,
Sevak-saroruhsukhad bhaanu bhorko ||
Lok-parloktenbisok sapne na sok,
Tulsikehiye hai bharoso ek aorko |
Ramkodulaaro daas baamdevko nivaas,
Naamkali-kaamtaru kesri-kisorko || 9 ||


Mahaabal-seem,mahaabheem,mahaabaanit,
Mahabeerbidit barayo Raghubeerko |
Kulis-kathortanujorparai ror ran,
Karuna-kalitman dhaarmik dheerko ||
Durjankokaalso karaal paal sajjanko,
Sumireharanhaar Tulsiki peerko |
Seey-sukhdaayakdulaaro Raghunaayak ko,
Sevaksahaayak hai saahsee sameerko || 10 ||

Rachibekobidhi jaise, paalibeko hari, har
Meechmaaribeko, jyaibeko sudhaapaan bho |
Dharibekodharni, tarni tam dalibeko,
Sokhibekrisaanu, poshibeko him-bhaanu bho ||
Khal-dukh-doshibeko,jan-paritoshibeko,
Maangibomaleentaako modak sudaan bho |
Aaratkeeaarti nivaaribeko tihoon pur,
Tulsikosaheb hatheelo Hanuman bho || 11 ||


Sevaksyokaee jaani jaankees maanai kaani,
Saanukoolsoolpaani navaai naath naankko |
Devidev daanav dayaavane havaai joraain haath,
Baapurebaraak kahaa aur raja raankko ||
Jaagatsovat baithe baagat binod mod,
taakaijo anarth so samarth ek aankko |
sabdin rooro paraai pooro jahan-tahan taahi,
jaakehai bharoso hiye hanuman haankko || 12 ||


Saanugsagauri saanukool soolpani taahi,
Lokpaalsakal lakhan ram janki |
Lokparlokko bisok so tilok taahi,
Tulsitamai kahaa kaahu beer aankee ||
Kesrikisorbandeechorke nevaaje sab,
Keertibimal kapi karunanidhaankee |
Balak-jyonpaalihain kripaalu muni siddh taako,
jaakehiye hulsati haank hanumanki || 13 ||


Karunanidhaan, balbudhike nidhaan, mod-
mahimanidhaan,gun-gyaanke nidhaan hau |
Baamdev-roop,bhoop Ramke sanehee, naam
lait-daitarth dharm kaam nirbaan hau ||
Aapneprabhav, Sitanathke subhaav seel,
Lok-baid-bidhikebidush Hanuman hau |
Mankee,bachankee, karamkee tihoon prakar,
Tulsitihaaro tum saheb sujaan hau || 14 ||


Mankoagam, tan sugam kiye kapees,
Kaajmahaaraajke samaaj saaj saaje hain |
Dev-bandeechorranror Kesreekisor,
Jug-jugjag tere birad biraaje hain ||
Beerbarjor, ghati jor Tulsiki aur
Sunisakuchaane saadhu, khalgan gaaje hain |
Bigreesanvaar Anjanikumar keeje mohin,
Jaisehot aaye Hanumanke nivaaje hain | 15 ||

Savaiya

Jaansiromanihau Hanuman sadaa janke man baas tihaaro |
Dhaarobigaaro main kaako kahaa kehi kaaran kheejhat haun to tihaaro ||
Saahebsevak naate te haato kiyo so tahaan Tulsiko na chaaro |
Doshsunaaye tain aagehunko hoshiyaar havai hon man tau hiye haaro ||16||


Terethape uthapaai na mahes, thapaai thirko kapi je ghar ghaale |
Terenivaaje gareebnivaaj biraajat baairinke ur saale |
Sankatsoch sabaai Tulsi liye naam phataai makreeke-se jaale |
Boorhbhaye, bali, merihi baar, ki haari pare bahutaai natt paale || 17 ||


Sindhutare, barhe beer dale khal, jaare hain lankse bank mavaa se |
Taainran-kehri kehrike bidle ari-kunjar chaail chavaa se ||
Tosonsamath susaaheb sei sahaai Tulsi dukh dosh davaase |
Baanarbaaj barhe khal-khechar, leejat kyon na lapeti lavaa-se || 18 ||

Achh-vimardankaanan-bhaani dasaanan aanan bhaan nihaaro |
Baaridnaadankpan kumbhkaran-se kunjar kehri-baaro ||
Ram-prataap-hutaasan,kachh,bipachh, sameer sameerdulaaro |
Paapten,saapten, taap tihoonte sadaa Tulsi kahan so rakhvaaro || 19 ||


Ghanakshari

Jaanatjahaan Hanumanko nivaajyau jan,
Mananumaani, bali, bol na bisaariye |
Sevaa-jogTulsi kabhoon kahaa chook paree,
Sahebsubhaav kapi saahibee sanbhaariye ||
Apraadheejaani keejaai saasti sahas bhaanti,
Modakmaraai jo, taahi maahur na maariye |
Saahseesameerke dulaare Raghubeerjooke,
Baanhpeer Mahaabeer begi hee nivaariye || 20 ||


Baalakbiloki, bali baareten aapno kiyo |
Deenbandhudayaa keenheen nirupaadhi nyaariye |
Raavrobharoso Tulsike, Raavroee bal,
Aasraavreeyaai, daas raavro bichaariye ||
Barhobikraal kali, kaako na bihaal kiyo,
Maathepagu baleeko, nihaari so nivaariye |
Kesreekisor,ranror, barjor beer,
Bahunpeerraahumaatu jyaun pachaari maariye || 21 ||


Uthapethapanthir thape uthpanhaar,
Kesreekumarbal aapno sambhariye |
Ramkegulaamniko kaamtaru Ramdoot,
Mosedeen doobareko takiyaa tihaariye ||
Sahebsamarth toson Tulsike maathe par,

Souapraadh binu beer, baandhi maariye |

Pokhreebisaal banhu, bali baarichar peer,

Makreejyaun pakrikaai badan bidaariye || 22||


Ramkosaneh, Ram saahas lakhan siya,
Ramkeebhagti, soch sankat nivaariye |
Mud-markatrog-baarinidhi heri haare,
Jeev-jaamvantkobharoso tero bhaariye ||
Koodiyekripaal Tulsi suprem-pabbyaten,
Suthalsubel bhaalu baaithikaai bichaariye |
Mahabeerbankure baraakee banhpeer kyon na,
Lankineejyon laatghaat hee marori maariye || 23 ||


Lok-parlokhoontilok na bilokiyat,
Tosesamrath chash chaarihoon nihaariye |
Karm,kaal, lokpaal, ag-jag jeevjaal,
Naathhaath sab nij mahimaa bichaariye ||
Khaasdaas raavro, nivaas tero taasu ur,
Tulsiso dev dukhee dekhiyat bhaariye |
Baattarumool banhusool kapikachhu-beli,
Upjeesakeli kapikeli hee ukhaariye || 24 ||


Karam-karaal-kansBhoomipaalke bharose,
Bakeebakbhaginee kaahooten kahaa daraaigee|
Barheebikraal baalghaatinee na jaat kahi,
Baanhubalbaalak chabeele chote charaaigee||
Aaeehaai banaae besh aap hee bichaari dekh,
Paapjaaya sabko guneeke paale paraaigee|
Pootnapisaachinee jyaaun kapikaanh Tulsikee,
Baanhpeermahaabeer, tere maare maraaigee|| 25 ||


Bhaalkeeki kaalkee ki roshkee tridoshkee hai,
Bedanbisham paap-taap chalchaanhkee |
Karmankootkee ki jantramantra bootkee,
Paraahijaahi paapinee maleen manmaanhkee ||
Paaihhisajaay nat kahat bajaay tohi,
Baavreena hohi baani jaani kapinaanhkee |
AanHanumaankee dohaaee balvaankee,
SapathMahaabeerkee jo rahaai peer baanhkee || 26 ||


Sinhikasanhaari bal, sursaa sudhaari chhal,
Lankineepachhaari maari baatika ujaaree hai |
Lankparjaari makree bidaari baarbaar,
Jaatudhaandhaari dhooridhaanee kari daaree haai ||
Torijamkaatari Madodri karhori aanee,
Ravankeeraanee Meghnad Manhtaaree haai ||
Bheerbaanhpeerkee nipat raakhee Mahaabeer,
Kaaunkesakoch Tulsike soch bhaaree haai || 27 ||


Terobaalkeli beer suni sahmat dheer,
Bhoolatsareersudhi sakra-rabi-rahukee ||
Tereebaanh basat bisok lokpaal sab,
Teronaam lait rahaai aarti na kaahukee ||
Saamdaan bhed bidhi baidhoo labed sidhi,
Haathkapinathheeke chotee chor saahukee|
Aalasanakh parihaaskaai sikhaavan haai,
Aitedin rahee peer Tulsike baahukee || 28 ||


Tooknikoghar-ghar dolat kangaal boli,
Baaljyon kripaal natpaal paali poso haai |
Keenheehaai sanbhaar saar Anjaneekumar beer,
Aapnobisaarihaain na merehoo bharoso haai ||
Itnoparekho sab bhaanti samrath aaju,
Kapiraajsaanchee kahaaun ko Tilok toso haai |
Saastisahat daas keeje pekhi parihaas,
Cheereekomaran khel baalkaniko so haai || 29 ||


Aapnehee paaptein tritaapatein ki saaptein,
Barreehaai baanhbedan kahee na sahi jaati haai |
Aaushadhanek jantra-mantra-totkaadi kiye,
Baadibhaye devtaa manaaye adhikaati haai ||
Kartaar,bhartaar, hartaar, karm, kaal,
Kohaai jagjaal jo na maanat itaati haai |
Cherotero Tulsee too mero kahyo Ramdoot,
Dheelteree beer mohi peertein piraati haai || 30 ||


DootRamrayako, sapoot poot baayko,
Samathhhaath paayko sahaay asahaayko |
Baankeebiradaavlee bidit baid gaiyat,
Raavanso bhat bhayo muthikaake ghaayako ||
Aitebarhe saaheb samarthko nivaajo aaj,
Seedatsusevak bachan man kaayako |
Thoreebaanhpeerkee barhi galaani Tulsiko,
Kaunpaap kop, lop pragat prabhaayako || 31 ||


Deveedev danuj manuj muni siddh naag,
Chotebarhe jeev jete chetan achet haain |
Pootnapisaachee jaatudhaanee jaatudhaan baam,
Ramdootkeerajaai maathe maani lait haain ||
Ghorjantra mantra koot kapat kurog jog,
Hanoomaanaan suni chaarhat niket haain |
Krodhkeeje karmko prabodh keeje Tulseeko,
Sodhkeeje tinko jo dosh dukh dait haain || 32 ||


Terebal baanar jitaaye ran Raavanson,
Tereghaale jaatudhaan bhaye ghar-gharke |
Terebal Raamraj kiye sab surkaaj,
Sakalsamaaj saaj saaje Raghubarke ||
Terogungaan suni geerbaan pulkat,
Sajalbilochan biranchi Hari harke |
Tulsikemaathepar haath phero keesnaath,
Dekhiyena daas dukhee tose kanigarke || 33 ||


Paalotere tookko parehoo chook mookiye na,
Koorkaaurhee dooko haaun aapnee aur heriye |
Bhoraanaathbhorehee sarosh hot thore dosh,
Poshitoshi thaapi aapno na avderiye ||
Anbutoo haaun Ambuchar, amb too haaun dimbh, so na,
Boojhiyebilamb avlamb mere teriye |
Baalakbikal jaani paahi prem pahichaani,
Tulseekeebaanh par laameeloom pheriye || 34 ||


Gheriliyo rogni kujogni kulogni jyaaun,
Baasarjalad ghan ghata dhuki dhaaee haai |
Barsatbaari peer jaariye javaase jas,
Roshbinu dosh, dhoom-mool malinaaee haai ||
KarnunaanidhaanHanumaan mahaabalvaan,
Herihansi haanki phoonki phaaujen taain udhaaee haai |
Khaayehuto Tulsee kurog raadh raaksani,
Kesreekisorraakhe beer bariaaee haai || 35 ||


Savaiya

Raamgulaamtuhee Hanuman
Gosaainsusaain sadaa anukoolo |
Paalyohaaun baal jyon aakhar doo
Pitumaatu son mangal mod samoolo ||
Baanhkeebedan baanhpagaar
Pukaarataarat aanand bhoolo |
ShriRaghubeernivaariye peer
Rahaaundarbaar paro lati loolo || 36 ||


Ghanakshari

Kaalkeekaraaltaa karam kathinaaee keedhaaun,
Paapkeprabhaavkee subhaaya baaya baavre |
Bedankubhaanti so sahee na jaati raati din,
Soeebaanh gahee jo gahee sameerdaavre ||
Laayotaru Tulsee tihaaro so nihaari baari,
Seenchiyemaleen bho tayo haai tihoon taavre |
Bhootanikeeaapnee paraayekee kripanidhaan,
Jaaniyatsabheekee reeti Ram Raavre|| 37 ||


Paayanpeerpetpeer baanhpeer munhpeer,
Jarjarsakal sareer peermaee haai |
Devbhoot pitar karam khal kaal grah,
Mohipardavri damaanak see daee haai ||
Haaunto bin molke bikaano bali baarehee tain,
AotRamnaamkee lalaat likhi laee haai |
Kumbhajkekinkar bikal boodhe gookhurani,
HaayRamraay aisee haal kahoon bhaee haai || 38 ||


Baahuk-subaahuneech leechar-mareech mili,
Munhpeer-ketujaakurog jaatudhaan haain|
Ramnaam japjaag kiyo chahon saanuraag,
Kaalkaise doot bhoot kahaa mere maan haain ||
Sumiresahaaya RamLakhan aakhar douu,
Jinkesamooh saake jaagat jahaan haain|
Tulseesanbhaari Tadhka-sanhaari bhaaree bhat,
Bedhebargadse banai baanvaan haain || 39 ||


Baalpanesoodhe man Ram sanmukh bhayo,
Ramnaamleit maangi khaat tooktaak haaun |
Paryolokreetimein puneet preeti Ramraaya,
Mohbasbaaitho tori tarkitraak haaun ||
Khote-khoteaachran aachrat apnaayo,
Anjanikumarsodhyo Rampaani paak haaun
Tulseegosaaen bhayo bhonrhe din bhooli gayo,
Taakophal paavat nidaan paripaak haaun || 40 ||


Asan-basan-heenvisham-vishaad-leen,
Dekhideen doobro karaai na haay-haay ko |
Tulseeanaathso sanaath Raghunaath kiyo,
Diyophal seelsindhu aapne subhaayko ||
Neechyahi beech pati paai bharuhaaigo,
Bihaaiprabhu-bhajan bachan man kaayko |
Taatentanu peshiyat ghor bartor mis,
Phooti-phootiniksat lon Raamraayko || 41 ||


Jiaonjag jaankeejeevanko kahaai jan,
Maribekobaaraansee baari sursariko |
Tulseekeduhoon haath modak haai aise thaun,
Jaakejiye muye soch karihaain na lariko |
Mokojhootho saancho log Ramko kahat sab,
Mereman maan haai na harko na hariko ||
Bhaareepeer dusah sareertain bihaal hot,
SouuRaghubeer binu sakaai door kariko || 42 ||


Sitapatisaaheb sahaay Hanuman nit,
Hitupdesko mahes maano gurukaai,
Maanasbachan kaay saran tihaare paany
Tumharebharose sur maain na jaane surkaai ||
Byaadhibhootjanit upaadhi kaahoo khalkee,
Samaadhikeeje Tulseeko jaani jan phurkaai |
KapinaathRaghunaath bholaanaath Bhootnaath,
Rogsindhukyon na daariyat gaay khurkaai || 43 ||

KahonHanumanson sujaan Raamraayson,
Kripanidhaansankarson saavdhaan suniye |
Harashvishaad raag rosh gun doshmaee,
Bircheebiranchi sab dekhiyat duniye |
Mayajeev kaalke karamke subhaayke,
KaraaiyaRaam baid kahaain saanchee man guniye |
Tumhatenkahaa na hoy haahaa so bujhaaiye mohi,
Haaun hoon rahon maaun hee bayo so jaani luniye || 44 ||



हनुमान बाहुक क्या है?

हनुमान बाहुक एक प्राचीन हिन्दू ग्रंथ है जिसमें भगवान हनुमान को समर्पित 44 छंद हैं। इसे 16वीं शताब्दी के कवि और संत तुलसीदास ने लिखा था, जो भगवान राम के अनन्य भक्त थे। हनुमान बाहुक को एक अत्यंत शक्तिशाली प्रार्थना माना जाता है, जो भक्तों को जीवन की कठिनाइयों, बीमारियों और चुनौतियों से उबरने में सहायता कर सकती है।

यह विशेष रूप से शारीरिक कष्टों को दूर करने में प्रभावी मानी जाती है, और इसे अक्सर वे लोग जपते हैं जो स्वास्थ्य लाभ और सुरक्षा की कामना करते हैं। “बाहुक” शब्द का अर्थ होता है बांह या सहारा, और इस पाठ को यह नाम इसलिए दिया गया है क्योंकि इसे मजबूत बांह की तरह शक्ति और सहारा प्रदान करने वाला माना जाता है।

हिंदू धर्म में हनुमान जी का महत्व

हनुमान जी, जिन्हें अंजनेय के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म के सबसे पूजनीय और प्रिय देवताओं में से एक हैं। वे शक्ति, भक्ति, साहस, और निस्वार्थता का प्रतीक माने जाते हैं, और उनका महत्व करोड़ों हिंदुओं के दिलों में गहराई से बसा हुआ है।

हनुमान जी को भगवान शिव का अवतार माना जाता है, और उनके अद्भुत कारनामे रामायण में वर्णित हैं। रामायण में हनुमान जी की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है, खासकर जब उन्होंने रावण द्वारा अपहृत सीता माता को बचाने में भगवान राम की सहायता की थी।

उनकी अटूट भक्ति, अपार शक्ति और साहस ने उन्हें भक्ति और निस्वार्थ सेवा का प्रतीक बना दिया है। हनुमान जी की राम जी के प्रति जो समर्पण था, वह हिंदू धर्म में एक मिसाल है, और इसी वजह से वे करोड़ों लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत बने हुए हैं।

हनुमान जी को हिंदू धर्म में शारीरिक शक्ति, ऊर्जा और साहस का प्रतीक भी माना जाता है। ऐसा विश्वास है कि हनुमान जी का नाम जपने या उनकी प्रार्थना करने से व्यक्ति शारीरिक और मानसिक बाधाओं को पार कर सकता है और जीवन की चुनौतियों का सामना साहस और धैर्य से कर सकता है।

कुल मिलाकर, हनुमान जी का महत्व कई आयामों में बंटा हुआ है। उनकी राम जी के प्रति भक्ति से लेकर उनके शक्ति और साहस के प्रतीकात्मक रूप तक, वे ऐसे पूजनीय देवता हैं जो आज भी लाखों लोगों को प्रेरित और उत्साहित करते हैं।

हनुमान बाहुक का उद्गम (उत्पत्ति)

हनुमान बाहुक भगवान हनुमान को समर्पित एक स्तोत्र है, जो 16वीं शताब्दी में तुलसीदास जी द्वारा रचित हनुमान चालीसा से प्रेरित है। ऐसा माना जाता है कि इस स्तोत्र में रोगों को दूर करने की शक्ति है, और भक्तजन इसे विभिन्न बीमारियों से मुक्ति पाने और भगवान हनुमान की कृपा प्राप्त करने के लिए पढ़ते हैं।

हनुमान द्वारा संजीवनी बूटी लाने की कथा

हिंदू महाकाव्य रामायण के अनुसार, जब भगवान राम के भाई लक्ष्मण, रावण के पुत्र मेघनाद (जिसे इंद्रजीत भी कहा जाता है) के साथ युद्ध में गंभीर रूप से घायल हो गए, तो भगवान हनुमान को हिमालय से संजीवनी बूटी लाने का कार्य सौंपा गया। यह बूटी किसी भी घाव को ठीक करने की शक्ति रखती है।

हनुमान जी तुरंत हिमालय की ओर उड़ चले और संजीवनी बूटी पहचान न पाने के कारण पूरी पहाड़ी को ही उठाकर युद्धक्षेत्र में वापस ले आए। इस तरह उन्होंने लक्ष्मण का जीवन बचाया। उनका यह वीरतापूर्ण कार्य उनकी अपार शक्ति, भक्ति और निस्वार्थता का प्रतीक है। यह कथा आज भी हिंदू धर्म में गहरे आदर के साथ मनाई और मानी जाती है।

हनुमान बाहुक की रचना

हनुमान बाहुक एक ऐसी प्रार्थना है जिसमें 44 छंद हैं, जो हिंदी के अवधी भाषा में लिखी गई है। इसे 16वीं शताब्दी के महान संत तुलसीदास जी ने रचा था, जिन्होंने रामचरितमानस की भी रचना की थी। यह प्रार्थना भगवान हनुमान की शक्ति, साहस और भगवान राम के प्रति उनकी भक्ति को समर्पित है।

यह माना जाता है कि हनुमान बाहुक का हर छंद विशेष उपचारात्मक शक्ति रखता है और इसे विभिन्न शारीरिक और मानसिक रोगों के उपचार के लिए पढ़ा जाता है। यह प्रार्थना हनुमान जन्मोत्सव और अन्य पवित्र अवसरों पर भक्तों द्वारा विशेष रूप से गाई जाती है।

हनुमान बाहुक का ऐतिहासिक महत्व

हनुमान बाहुक का ऐतिहासिक महत्व इसकी उपचारात्मक शक्तियों में निहित है। प्राचीन भारतीय वैद्य इसे कई बीमारियों के उपचार के लिए प्रयोग करते थे। इसके छंद आज भी शारीरिक और मानसिक कष्टों से राहत पाने के लिए भक्तों द्वारा पढ़े जाते हैं।

यह प्रार्थना हनुमान जी की उपासना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुकी है और इसे हनुमान जन्मोत्सव सहित कई शुभ अवसरों पर पढ़ा जाता है। इसकी लोकप्रियता और व्यापक उपयोग इसके आध्यात्मिक महत्व और शक्ति का प्रमाण है।

हनुमान बाहुक का महत्व

हनुमान बाहुक भगवान हनुमान को समर्पित एक पूजनीय प्रार्थना है, जो उनकी वीरता, शक्ति और भक्ति के लिए प्रसिद्ध हैं। यह व्यापक रूप से माना जाता है कि हनुमान बाहुक का पाठ करने से जीवन की विभिन्न कठिनाइयों और रोगों से मुक्ति मिलती है।

साथ ही, यह प्रार्थना भक्तों को दिव्य आशीर्वाद, मानसिक शक्ति, और आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करती है। भक्त इसे भगवान हनुमान की कृपा, सुरक्षा और मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए अपनी भक्ति के रूप में पढ़ते हैं।

हनुमान बाहुक के पाठ के लाभ

हनुमान बाहुक एक अत्यंत शक्तिशाली प्रार्थना है जो भगवान हनुमान को समर्पित है। ऐसा माना जाता है कि जो लोग उनकी शरण में जाते हैं और उनकी प्रार्थना करते हैं, उन्हें भगवान हनुमान का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

हनुमान बाहुक का नियमित पाठ जीवन में आने वाली विभिन्न कठिनाइयों और रोगों से राहत दिला सकता है। कहा जाता है कि यह प्रार्थना बीमारियों को ठीक करने, नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने और बुरी शक्तियों से बचाने में सक्षम है।

इसके अलावा, हनुमान बाहुक के पाठ से कई अन्य आशीर्वाद भी मिलते हैं। इनमें शक्ति, बुद्धिमत्ता और आध्यात्मिक विकास प्रमुख हैं। कई लोग नियमित रूप से इस प्रार्थना का पाठ भगवान हनुमान से सुरक्षा और मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए करते हैं।

यह प्रार्थना विशेष रूप से उन समयों में अत्यधिक प्रभावी मानी जाती है जब व्यक्ति वित्तीय समस्याओं, स्वास्थ्य संबंधी कठिनाइयों या रिश्तों से जुड़ी परेशानियों का सामना कर रहा हो।

आध्यात्मिक लाभों के साथ-साथ, हनुमान बाहुक मानसिक और भावनात्मक रूप से भी शांति प्रदान करता है। कहा जाता है कि इसके पाठ से मन को शांति मिलती है, तनाव और चिंता कम होती है, और आंतरिक संतुलन व सुकून प्राप्त होता है।

हालांकि हनुमान बाहुक का पाठ हनुमान जन्मोत्सव के समय विशेष रूप से किया जाता है, लेकिन इसे सालभर कभी भी पढ़ा जा सकता है।

कुल मिलाकर, हनुमान बाहुक का पाठ भगवान हनुमान का आशीर्वाद और सुरक्षा प्राप्त करने का एक शक्तिशाली और प्रभावी तरीका है, जो जीवन की चुनौतियों और बाधाओं को दूर करने में सहायक होता है।

नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा

भगवान हनुमान को समर्पित हनुमान बाहुक एक अत्यधिक शक्तिशाली प्रार्थना मानी जाती है, जो नकारात्मक ऊर्जाओं से सुरक्षा प्रदान करती है। यहाँ कुछ तरीके हैं जिनसे हनुमान बाहुक को नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा के लिए प्रभावी माना जाता है:

  1. आभा की शुद्धि: यह माना जाता है कि हनुमान बाहुक एक व्यक्ति की आभा या ऊर्जा क्षेत्र को शुद्ध करता है, जिससे नकारात्मक ऊर्जाओं और बुरी आत्माओं को दूर रखने में मदद मिलती है।
  2. सकारात्मकता को बढ़ावा: इस प्रार्थना के माध्यम से सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती है, जो नकारात्मक विचारों और ऊर्जाओं को संतुलित और निष्क्रिय करने में मदद करती है।
  3. रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि: हनुमान बाहुक का पाठ शरीर और मन पर हीलिंग प्रभाव डालता है, जिससे रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है और नकारात्मक ऊर्जाओं से उत्पन्न बीमारियों से बचाव होता है।
  4. आध्यात्मिक सुरक्षा: यह प्रार्थना एक आध्यात्मिक कवच के रूप में कार्य करती है, जो नकारात्मक ऊर्जा, मानसिक हमलों और काले जादू जैसी बुरी शक्तियों से सुरक्षा प्रदान करती है।
  5. आंतरिक शक्ति का विकास: हनुमान बाहुक व्यक्ति की आंतरिक शक्ति और संकल्प को बढ़ाने में मदद करता है, जिससे भय और अन्य नकारात्मक भावनाओं से उबरने में सहायता मिलती है, जो अक्सर नकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करती हैं।

हनुमान बाहुक का आध्यात्मिक महत्व

हनुमान बाहुक का आध्यात्मिक महत्व इस बात में है कि यह भक्त को भगवान हनुमान के करीब लाता है और उनकी दिव्य उपस्थिति का अनुभव करने में मदद करता है। हनुमान बाहुक के कुछ आध्यात्मिक पहलू इस प्रकार हैं:

  1. भक्ति को बढ़ावा: हनुमान बाहुक का पाठ भगवान हनुमान के प्रति प्रेम और श्रद्धा व्यक्त करने का एक साधन है, जो भक्ति को प्रगाढ़ करता है।
  2. आध्यात्मिक विकास: इस प्रार्थना के माध्यम से भक्त अपनी सीमाओं को पार कर साहस, विनम्रता और विश्वास जैसे गुणों को विकसित कर सकता है, जो उसके आध्यात्मिक विकास में सहायक होते हैं।
  3. सुरक्षा प्रदान करता है: हनुमान बाहुक एक शक्तिशाली आध्यात्मिक कवच माना जाता है, जो भक्त को नकारात्मक ऊर्जाओं, बुरी आत्माओं और अन्य हानिकारक शक्तियों से बचाता है।
  4. आशीर्वाद प्रदान करता है: इस प्रार्थना से भक्त को शक्ति, बुद्धि और समृद्धि जैसे विभिन्न आशीर्वाद प्राप्त होते हैं, और यह भक्त की इच्छाओं को पूरा करने में सहायक मानी जाती है।
  5. स्वयं की पहचान: हनुमान बाहुक का पाठ भक्त को उसके अहंकार से ऊपर उठने और स्वयं एवं परमात्मा की गहरी समझ विकसित करने में मदद करता है।

कुल मिलाकर, यह प्रार्थना अत्यधिक आध्यात्मिक महत्व रखती है और हिंदू परंपरा का एक अभिन्न हिस्सा है। इसे श्रद्धा और भक्ति के साथ पढ़ने से भगवान हनुमान की कृपा और आशीर्वाद की प्राप्ति होती है, और भक्त उनके दिव्य अनुग्रह का अनुभव कर सकता है।

तुलसीदास पर हनुमान जी का आशीर्वाद

तुलसीदास, जो एक प्रसिद्ध हिंदू संत और कवि थे, उन्हें भगवान हनुमान का आशीर्वाद प्राप्त हुआ माना जाता है। हनुमान जी को तुलसीदास का गुरु और मार्गदर्शक माना जाता है, और कहा जाता है कि भगवान हनुमान ने तुलसीदास को दर्शन दिए और उन्हें रामचरितमानस लिखने की प्रेरणा दी। रामचरितमानस भगवान राम को समर्पित एक महत्वपूर्ण भक्ति ग्रंथ है, जिसे तुलसीदास ने हनुमान जी की प्रेरणा से लिखा था।

भगवान हनुमान ने तुलसीदास की आध्यात्मिक चेतना को जागृत किया और उन्हें उनके अहंकार से ऊपर उठने में मदद की, जिससे वे ईश्वर की गहन समझ प्राप्त कर सके। पूरी ज़िंदगी में तुलसीदास को हनुमान जी का संरक्षण और समर्थन मिला, जिससे वे अपनी कठिनाइयों को पार कर सके और अपने आध्यात्मिक उद्देश्य को पूरा किया।

तुलसीदास और भगवान हनुमान के बीच के इस गुरु-शिष्य संबंध ने न केवल तुलसीदास को बल्कि अनगिनत भक्तों को हनुमान जी के आशीर्वाद से लाभान्वित किया। यह संबंध यह सिखाता है कि भक्ति की शक्ति कितनी गहरी होती है और गुरु-शिष्य के रिश्ते में कितनी परिवर्तनकारी शक्ति होती है। तुलसीदास की जिंदगी और उनकी शिक्षाएं आज भी भक्तों को प्रेरित करती हैं और यह याद दिलाती हैं कि हमें ईश्वर के प्रति समर्पण करना चाहिए और गुरु के मार्गदर्शन और आशीर्वाद की तलाश करनी चाहिए।

हनुमान बाहुक की रचना की कथा

कहते हैं, एक बार तुलसीदास जी को अपने हाथों में इतनी तेज दर्द हुआ कि वे अपने हाथ तक नहीं हिला पा रहे थे। दवाएं और मंत्र सब बेअसर हो रहे थे। तब उन्होंने भगवान हनुमान की प्रार्थना की और उनसे मदद मांगी। भगवान हनुमान ने तुलसीदास जी को स्वप्न में दर्शन दिए और उन्हें हनुमान बाहुकलिखने का निर्देश दिया।

तुलसीदास ने जागते ही हनुमान बाहुक की रचना प्रारंभ की, जो 44 छंदों में भगवान हनुमान की महिमा का गुणगान करता है। इसे लिखते समय, जैसे-जैसे तुलसीदास जी छंदों का पाठ करते गए, उनका दर्द कम होता गया। पूरी प्रार्थना पूरी करने के बाद, उन्होंने इसे श्रद्धा और भक्ति के साथ पढ़ा, और उनका दर्द पूरी तरह से समाप्त हो गया।

हनुमान बाहुक का महत्व

तुलसीदास का मानना था कि हनुमान बाहुक भगवान हनुमान की प्रेरणा से लिखी गई और इसमें शारीरिक और मानसिक रोगों को ठीक करने की शक्ति है। उनका यह भी मानना था कि अगर इसे विश्वास और भक्ति के साथ पढ़ा जाए, तो भगवान हनुमान का आशीर्वाद प्राप्त होता है और जीवन की कठिनाइयों को दूर किया जा सकता है।

आज भी हनुमान बाहुक को एक शक्तिशाली प्रार्थना के रूप में देखा जाता है, जिसे भक्त भगवान हनुमान के आशीर्वाद और सुरक्षा के लिए पढ़ते हैं। यह प्रार्थना दुखों से मुक्ति दिलाने और जीवन की बाधाओं को दूर करने में सहायक मानी जाती है।

हनुमान बाहुक का पाठ कैसे करें

हालांकि हनुमान बाहुक के पाठ के लिए कोई सख्त नियम नहीं हैं, फिर भी कुछ सामान्य दिशा-निर्देश हैं, जिनका पालन करने से पाठ अधिक फलदायी हो सकता है:

  1. एक शांत और स्वच्छ स्थान चुनें, जहाँ भगवान हनुमान की तस्वीर या मूर्ति हो।
  2. दीपक और धूप जलाएं, और स्नान या हाथ-पैर धोकर शुद्धता का प्रतीक मानकर पाठ प्रारंभ करें।
  3. पाठ से पहले हनुमान चालीसा या कोई और प्रार्थना करें।
  4. पूरे 44 छंदों का पाठ भक्ति और श्रद्धा के साथ करें।
  5. पाठ पूरा करने के बाद भगवान हनुमान को फूल या फल अर्पित करें।
  6. पाठ को नियमित रूप से 43 दिनों तक करें ताकि इसके पूर्ण लाभ प्राप्त हो सकें।

पाठ के दौरान सावधानियाँ

हनुमान बाहुक एक शक्तिशाली प्रार्थना है, इसलिए इसे गंभीरता और श्रद्धा के साथ करना चाहिए। इसे कभी भी लापरवाही से या मानसिक रूप से विचलित अवस्था में न पढ़ें। और अगर किसी प्रकार की शारीरिक या मानसिक बीमारी है, तो चिकित्सकीय सलाह और उपचार के साथ-साथ इस प्रार्थना को पढ़ें, ताकि ईश्वर की कृपा से आपकी सेहत में शीघ्र सुधार हो।

हनुमान बाहुक का नियमित पाठ भक्तों को मानसिक और शारीरिक समस्याओं से मुक्ति दिलाने, नकारात्मक ऊर्जा से बचाने और जीवन की कठिनाइयों को दूर करने में मदद करता है।

लेख का संक्षेप

हनुमान बाहुक भगवान हनुमान को समर्पित एक प्रार्थना है। इस ब्लॉग में हनुमान बाहुक की उत्पत्ति, रचना, और महत्व पर चर्चा की गई है, साथ ही इसके आशीर्वाद और इसे कैसे पढ़ा जाए, इस पर भी प्रकाश डाला गया है।

हनुमान जी द्वारा संजीवनी बूटी लाने की कथा हनुमान बाहुक की रचना का आधार मानी जाती है। इसे 16वीं शताब्दी में तुलसीदास जी ने लिखा था। इस शक्तिशाली प्रार्थना का नियमित पाठ शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार, नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा, और आध्यात्मिक उन्नति जैसे अनेक लाभ प्रदान करता है।

तुलसीदास जी पर हनुमान जी के आशीर्वाद और हनुमान बाहुक के उनके जीवन पर प्रभाव की चर्चा भी इस लेख में की गई है।


1. हनुमान बाहुक मंत्र क्या है?

हनुमान बाहुक भगवान हनुमान को समर्पित एक प्रार्थना है, जिसे गोस्वामी तुलसीदास ने रचा था। यह 44 छंदों में भगवान हनुमान की महिमा का गुणगान करता है और शारीरिक व मानसिक कष्टों से मुक्ति दिलाने वाली मानी जाती है। इसे विशेष रूप से दर्द और बीमारियों से राहत के लिए पढ़ा जाता है।

2. हनुमान बाहुक कैसे पढ़ा जाता है?

हनुमान बाहुक का पाठ करने के लिए आपको एक शांत और स्वच्छ स्थान पर बैठना चाहिए, जहाँ भगवान हनुमान की मूर्ति या तस्वीर हो। दीपक जलाएं और हाथ-पैर धोकर शुद्धता के साथ पाठ प्रारंभ करें। हनुमान बाहुक के 44 छंदों को श्रद्धा और भक्ति के साथ पढ़ें। 43 दिनों तक नियमित रूप से पाठ करने से अधिक लाभ होता है।

3. हनुमान बाहुक के क्या फायदे हैं?

हनुमान बाहुक के नियमित पाठ से मानसिक और शारीरिक कष्टों से मुक्ति मिलती है। यह प्रार्थना नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा करती है, आत्मविश्वास बढ़ाती है और जीवन की बाधाओं को दूर करने में मदद करती है। इसे पढ़ने से आध्यात्मिक विकास भी होता है और भगवान हनुमान का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

4. हनुमान बाहुक कितने दिन करना चाहिए?

हनुमान बाहुक का पाठ 43 दिनों तक नियमित रूप से करना चाहिए। इस दौरान श्रद्धा और भक्ति के साथ पाठ करने से भगवान हनुमान की कृपा से शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक लाभ मिलते हैं।

5. बजरंग बाण रोज बोल सकते हैं क्या?

हाँ, बजरंग बाण का पाठ आप रोज कर सकते हैं। यह एक शक्तिशाली प्रार्थना है जो नकारात्मक ऊर्जा से बचाने और जीवन की कठिनाइयों को दूर करने में सहायक मानी जाती है। हालांकि इसे हमेशा श्रद्धा और भक्ति के साथ पढ़ना चाहिए।

6. डर लगने पर हनुमान जी का कौन सा मंत्र बोलना चाहिए?

डर और भय से मुक्ति पाने के लिए आप “हनुमान चालीसा” या “हनुमान बाहुक” का पाठ कर सकते हैं। इसके अलावा, “ॐ हनुमंते नमः” का जाप भी आपको डर से छुटकारा दिलाने और साहस प्रदान करने में मदद करेगा।

Hemlata
Hemlatahttps://www.chalisa-pdf.com
Ms. Hemlata is a prominent Indian author and spiritual writer known for her contributions to the realm of devotional literature. She is best recognized for her work on the "Chalisa", a series of devotional hymns dedicated to various Hindu deities. Her book, available on Chalisa PDF, has garnered widespread acclaim for its accessible presentation of these spiritual texts.
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